यजुर्वेद (11, 61) ने नारी के वंदनीया स्वरूप का कितना सुंदर खाका प्रस्तुत किया है-‘ हे बुराई और निंदा से रहित बालक संपूर्ण विद्वानों में प्रशस्त ज्ञानवाली अखण्ड विद्या पढ़ाने वाली विदुषी (राष्ट्र निर्मात्री) स्त्री भूमि के एक शुभ स्थान में तुझको अग्नि के समान जैसे भूमि को खोदने के कूप जल निष्पन्न करते हैं, वैसे विद्यायुक्त करे।