• साल १ ९९ ५-९ ६ से साल २ ०० ४-० ५ के बीच कृषि-क्षेत्र की बढ़ोतरी सालाना १. ८ ५ फीसदी के दर से हुई।
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प्रधानमंत्री को यह ज़वाब देना चाहिए कि “क्यों कृषि-क्षेत्र संकट मेंहै? ”क्या कृषि के प्रति सरकार की लापरवाही इसके लिये जिम्मेवार नहीं है?क्या कृषि के प्रति सरकार का व्यवहार सौतेला नहीं है?
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बदलती जलवायु के कारण यहाँ के जंगल (जिसकी लकड़ी तथा ईंधन से पकी ईंटें प्राप्त हुईं), कृषि-क्षेत्र एवं संलग्न ग्राम और नदी से निकली सिंचाई की नहरें आज लुप्त हो गयीं।
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इसका विकट रूप सन 1815 में नेपोलियन युद्ध के पश्चात उस समय देखने को मिला जब कृषि-क्षेत्र को घाटे से उबारने के लिए अनाज के आयात पर रोक लगा दी गई.
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बदलती जलवायु के कारण यहाँ के जंगल (जिसकी लकड़ी तथा ईंधन से पकी ईंटें प्राप्त हुईं), कृषि-क्षेत्र एवं संलग्न ग्राम और नदी से निकली सिंचाई की नहरें आज लुप्त हो गयीं।
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सकल घरेलू उत्पाद के तीन घटकों-उद्योग, कृषि और सेवा-क्षेत्रों में जहां उद्योग और खासकर सेवा-क्षेत्र की प्रगति पर देश नाज कर सकता है, वहीं कृषि-क्षेत्र की उत्पादकता में ठहराव चिंताजनक है।
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60 के दशक के बाद के गेहूं की ही बात नहीं है, हमारे वैज्ञानिकों की उपलब्धि को मात्र कृषि-क्षेत्र तक सीमित कर के आंकना भी अपनी ही क्षमताओं पर प्रश्न चिह्न लगाने जैसा होगा ।
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एक तरफ, भारत सरकार अपने किसानों को किसी प्रकार की सुरक्षा न देने की नीति पर चल रही है, दूसरी तरफ दुनिया के अमीर देश अपने कृषि-क्षेत्र को भारी अनुदान दे रहे हैं ।
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एक तरफ, भारत सरकार अपने किसानों को किसी प्रकार की सुरक्षा न देने की नीति पर चल रही है, दूसरी तरफ दुनिया के अमीर देश अपने कृषि-क्षेत्र को भारी अनुदान दे रहे हैं ।
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इस अवधि में जहां गेहूं का कृषि क्षेत्र में 9. 95 मिलि. हेक्टेयर से बढ़कर 28.04 मिलि. हेक्टेयर हो गया और चावल का कृषि-क्षेत्र 30.81 मिलि. हेक्टेयर से बढ़कर 43.42 मिलि. हेक्टेयर हो गया।