भारत में कृषि-योग्य भमि का 60 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए वर्षा जल पर निर्भर है और इस जमीन पर अभी हरित क्रांति ने अपनी धानी चूनर नहीं लहरायी है।
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10, 000 हैक्टेयर से अधिक होता है, उन्हें बृहद परियोजनाएं कहा जाता है और जिन परियोजनाओं का कृषि-योग्य कमानक्षेत्र 10,000 हैक्टेयर से कम किन्तु 2,000 हैक्टेयर से अधिक होता है, वे मध्यम परियोजनाएं कहलाती हैं।
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तथापि मात्र 21% भौगोलिक क्षेत्र वाले एशिया (यूएसएसआर के भूतपूर्व देशों को छोड़कर) में विश्र्व की लगभग 32 प्रतिशत कृषि-योग्य भूमि है जिसके बाद उत्तर केन्द्रीय अमरीका का स्थान आता है जिसमें लगभग 20 प्रतिशत कृषि-योग्य भूमि है।
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तथापि मात्र 21% भौगोलिक क्षेत्र वाले एशिया (यूएसएसआर के भूतपूर्व देशों को छोड़कर) में विश्र्व की लगभग 32 प्रतिशत कृषि-योग्य भूमि है जिसके बाद उत्तर केन्द्रीय अमरीका का स्थान आता है जिसमें लगभग 20 प्रतिशत कृषि-योग्य भूमि है।
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हमारे यहां कृषि-योग्य जमीन 55 फीसदी (32.90 करोड़ हेक्टेयर में से 18.20 करोड़ हेक्टेयर) है, जबकि अमेरिका में ये 19 फीसदी, यूरोप में 25 फीसदी और अपने ‘ बैरी ' पड़ोसी पाकिस्तान में तो 28 फीसदी ही है।
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विश्र्व में देश-वार भौगोलिक क्षेत्र, कृषि-योग्य भूमि और सिंचित क्षेत्र का विश्र्लेषण करने पर ऐसा पता चलता है कि महाद्वीपों के बीच सर्वाधिक विशाल भौगोलिक क्षेत्र अफ्रीका में स्थित है जो कि विश्र्व के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत बैठता है।
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सौभाग्यवश आज तक सारी राज्य सरकारें इसका उपयोग सिर्फ जनहित में करती आ रही थी. बहनजी की बड़ी-सी खोपड़िया में यह आईडिया सबसे पहले आया कि इस अधिकार का दुरुपयोग कर अगर कृषि-योग्य भूमि को बिल्डरों के हाथों में सौंप दिया जाए तो बहुत सारा माल बनाया जा सकता है.
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जबकि उस सम्बंधित व्यक्ति का न तो कोई छोटा-बड़ा कारोबार चल रहा होता है, न ही किसी तरह की बहुराष्ट्रीय कंपनी का पैकेज उसके साथ होता है, न ही वह किसी कंपनी-मिल-कारखाने का मालिक होता है, कृषि-योग्य भूमि भी इतनी नहीं होती है कि उसके द्वारा लाखों-करोड़ों रुपयों को पैदा किया जा सके.
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अतः जिस किसी ने मॆरा अनुसरण किया वह मेरा है और जिस ने मेरी अवज्ञा की तो निश्चय ही तू बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है (36) मेरे रब! मैंने एक ऐसी घाटी में जहाँ कृषि-योग्य भूमि नहीं अपनी सन्तान के एक हिस्से को तेरे प्रतिष्ठित घर (काबा) के निकट बसा दिया है।
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बदले में उन्हें अतिरिक्त अनाज में से कुछ हिस्सा दिया जाता हो. चूंकि खेती प्रकृति-आश्रित थी और उससे अनिश्चितता भी जुड़ी थी, इसलिए श्रमिकों में जिनके पास कृषि-योग्य भूमि का अभाव था और जो बाकी बची भूमि का उपयोग करने से स्वयं को असमर्थ पाते थे, उन्हें अन्न उत्पादक बनने के बजाय अन्न-संग्राहक बनना अधिक सुरक्षित और भरोसेमंद लगा होगा.