उन्होंने अपने व्यंग के द्वारा बार-बार पाठको का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमजोरियों और विसंगतियो की ओर आ कृष्ट किया है जो हमारे जीवन को दूभर बना रही है ।
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कृष्ट भूमि के रकबे के आधार पर टैक्स वसूल करने की इस व्यवस्था का लागू होना इस बात का प्रतीक था कि दासप्रथा के राजकीय भू-स्वामित्व का स्थान क्रमशः सामन्ती निजी भू-स्वामित्व ने ले लिया था।
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उन्होंने बताया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में पदक पाने तथा श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले 17 खिलाडियों, राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में पदक पाने तथा उत् $ कृष्ट प्रदर्शन करने वाले 10 खिलाडियों को सम्मानित किया जाएगा।
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यानी अपने अलावा ये, वो, तुम जो अपने लिये न तो उपयोगी थे न ही उपयोगी होते सकते हैं और न ही अपने नातों के खांचों में कहीं फ़िट बैठते वे भ्रष्ट, अपराधी, गुणहीन, नि: कृष्ट पतित हैं.
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उत् कृष्ट दृश्य यह दृश्य HTML स्वरूप या इसी के समान मार्कअप भाषाओं (CHTML, WML इत्यादि) में रेंडर करता है और उन मोबाइल ब्राउज़र्स के लिए पश्चगामी संगतता प्रदान करता है, जो नए समकालीन दृश्य में रेंडर नहीं कर सकते हैं.
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हास्य-परिहास पंडित जी मेरे मरने के बाद, इतना कृष्ट उठा लेना मदिरा जल की जगह, ताप्ती का जल पिला देना:-रामकिशोर पंवार कल रात जब मैं रायपुर से छत्तिसगढ एक्सप्रेस से बैतूल वापस लौटा तो रात के ढाई बज चुके थे।
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एक बार फिर उस रोटी-कपडा और मकान के दर्द को परिभाषित करने वाली फिल्म में व्यक्त की गई मनोज ऊर्फ भारत कुमार की पीडा को मैं अपनी पीडा समझ कर अपनी वसीसत करना चाहता हँू कि मरने के बाद उसके साथ लोग जो करना है वह करे लेकिन यदि संयोग से कोई पंडित उस अंतिम यात्रा में साथ रहे तो वह इतना कृष्ट जरूर करे कि मेरे मँुह में ताप्ती जल जरूर हो।
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एक बार फिर उस रोटी-कपडा और मकान के दर्द को परिभाषित करने वाली फिल्म में व्यक्त की गई मनोज ऊर्फ भारत कुमार की पीडा को मैं अपनी पीडा समझ कर अपनी वसीसत करना चाहता हँू कि मरने के बाद उसके साथ लोग जो करना है वह करे लेकिन यदि संयोग से कोई पंडित उस अंतिम यात्रा में साथ रहे तो वह इतना कृष्ट जरूर करे कि मेरे मँुह में ताप्ती जल जरूर हो।
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ऐसी अनेक कथा-कहा नि याँ गढ़ी गइर्, जि नमें नि कृष्ट से नि कृष्ट कमर् जीवन भर करते रहने वाले व्य क्ति केवल एक बार अनजाने-धोखे से-“ नारायण ” का नाम लेने से मुक्त हो गये इन कथाओं से सत्कमोर्ं की व्यथर्ता सि द्ध होती है और प्रतीत होने लगता है कि जीवन-शोधन के लि ए श्रम और त्याग करने की अपेक्षा थोड़ा-बहुत पूजा-पाठ कर लेना ही अ धि क सु वि धाजनक है।
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ऐसी अनेक कथा-कहा नि याँ गढ़ी गइर्, जि नमें नि कृष्ट से नि कृष्ट कमर् जीवन भर करते रहने वाले व्य क्ति केवल एक बार अनजाने-धोखे से-“ नारायण ” का नाम लेने से मुक्त हो गये इन कथाओं से सत्कमोर्ं की व्यथर्ता सि द्ध होती है और प्रतीत होने लगता है कि जीवन-शोधन के लि ए श्रम और त्याग करने की अपेक्षा थोड़ा-बहुत पूजा-पाठ कर लेना ही अ धि क सु वि धाजनक है।