जन्म के पश्चात शैशव, वाल्य, कौमार, पोगण्ड और कैशोरावस्था का क्रम चलता है।
22.
इस क्रम में तीन प्राकृत सर्ग और पांच वैकारित सर्गों के सम्मेलन से काक कौमार नामक एक और सर्ग बना।
23.
' बुद्धिमान मनुष्य कौमार अर्थात बचपन से ही धर्म साधना शुरू करते हैं, क्योंकि ' दुर्लभं मानुषं जन्म तदप्यध्रुवदर्थम्।
24.
शैशव से लेकर कौमार अवस्था तक के क्रम से लगे न जाने कितने चित्र सूर के काव्य में वर्णित हैं ।
25.
(iv) बाल रोग चिकित्सा में उपयोग:-आयुर्वेद में आधुनिक पीड़िया-ट्रिक्स को कौमार भृत्य नाम दिया गया है।
26.
अजात-शत्रु के राज्य चिकित्सक का नाम आजीवक कोमार भच्च था, जिनके नाम पर आयुर्वेद में कौमार भृत्य वाल चिकित्सा रखा गया।
27.
यों तो शल्य, शालाक्य, काय चिकित्सा, भूत विद्या, कौमार भृत्य, अंगद, रसायन और वाजीकरण आयुर्वेद इन आठ तंत्रों में विभक्त है ।
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आयुर्वेद में काश्यप संहिता में वर्णित कौमार भृत्य (बालरोग) के अंतर्गत बीस प्रकार की योनिगत व्याधियों का वर्णन है जिसमें से एक 'पिच्छिला योनि' के लक्षण पूर्णतः ल्यूकोरिया से मिलते हैं।
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ये अवस्थाएं हैं-गर्भवास, जन्म, बाल्य, कौमार, पोगंड यानी पांच से सोलह वर्ष तक की वय का बालक, यौवन, स्थाविर्य, जरा, प्राणरोध और नाश।
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आयुर्वेद में काश्यप संहिता में वर्णित कौमार भृत्य (बालरोग) के अंतर्गत बीस प्रकार की योनिगत व्याधियों का वर्णन है जिसमें से एक ' पिच्छिला योनि ' के लक्षण पूर्णतः ल्यूकोरिया से मिलते हैं।