अश्वेत लोगों के व्यवहार की इस नस्लवादी व्याख्या की जड़ में कि वे अतिकामुक, चालाक, मनमौजी, आदि होते हैं, कारणात्मक आरोपण के क्रियातंत्र के तौर पर रूढ़ीकरण ही मौजूद है।
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व्यवहारवादी मनोविज्ञान आद्योपांत यंत्रवादी है और पशुओं की भांति मनुष्य को भी एक निष्क्रिय क्रियातंत्र अथवा एक तरह का यंत्र मानता है जो मन से युक्त हो या न हो, बाह्य प्रभावों पर प्रतिक्रिया अवश्य करेगा।
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यद्यपि साहचर्यों का क्रियातंत्र वही रहता है (यानि साहचर्यों का साम्य, संलग्नता अथवा विरोध के आधार पर उत्पन्न होना), परिकल्पनों (बिंबों) का चयन फिर भी इन्हीं निर्धारणकारी प्रवृत्तियों से निदेशित होता है।
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निस्संदेह रूप से, पहले की सक्रियता का उत्पाद होने की वज़ह से न्यूरानों के संरचनात्मक तथा रासायनिक परिवर्तन बाद के अधिक पेचीदे कार्यों के निष्पादन के क्रियातंत्र में शामिल होकर इन कार्यों की एक आवश्यक पूर्वापेक्षा बन जाते हैं।