जाने भी दो पास उस क्षयी रामचन्द्र के दिशा-बन्धुओं को, काली साड़ियां तिमिर की-पहिन-पहिन कर, होने भी दो अनुभूति वेदना की उसको दैन्य-दुःख-दावा-दाह, अशनि-निपात की, शेष हुये निज बन्धु शेष के विछोह में वेदना-विनिर्मित विशेष शेष-पाश से वेष्टित हो, उसको भी होने मोहाविष्ट दो।
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अडुसा-इसके ` वासा ' आदि अनेक नाम हैं, वादी को उत्पन्न करता है, कटुहै, कफ, पित्त, रुधिर, “ वास, कास, ज्वर, उल्टी, प्रमेह, कुश्ठ और क्षयी इन सबको दूर करने वाला है।
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‘‘ चाहे प्रगतिवादी आंदोलन ने साहित्य में कोई महान भूमिका न भी पूरी की हो मगर इतना तो मानना पड़ेगा कि उसने क्षयी रोमांस का रचनात्मक धरातल पर विरोध किया और हिंदी नवलेखन को मध्य वर्ग की पतनशीलता की तस्वीर बन जाने से बहुत हद तक बचा लिया।
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जाने भी दो पास उस क्षयी रामचन्द्र के दिशा-बन्धुओं को, काली साड़ियां तिमिर की-पहिन-पहिन कर, होने भी दो अनुभूति वेदना की उसको दैन्य-दुःख-दावा-दाह, अशनि-निपात की, शेष हुये निज बन्धु शेष के विछोह में वेदना-विनिर्मित विशेष शेष-पाश से वेष्टित हो, उसको भी होने मोहाविष्ट दो।
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मुझे इस बात का दुःख है कि नागर या मायारानी के कब्जे से तुझे छुड़ाने के लिए मैंने तरह-तरह के ढोंग रचे और इसका दम भर के लिए भी विचार न किया कि मैं उस क्षयी रोग को अपनी छाती से लगाने का प्रबंध कर रहा हूं जिसे पहली ही अवस्था में ईश्वर की कृपा ने मुझसे अलग कर दिया था।
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वैसे भी ब्रम्ह मुहूर्त में नारी का यह धर्म है की अपने पति का भी विरोध करे … क्योंकि इस तरह से उत्पन्न संतान राक्षस होती है ऐसी हमारी मान्यता है … गौतम ने किसी को भी नहीं बक्शा … चंद्रमा को क्षयी होने का श्राप दिया … इंद्र को सहस्त्र्व्रनी होने का श्राप दिया और अहिल्या को पाषाण होने का श्राप दिया … मुक्ति भी सबकी एक साथ नहीं हुई ….