अब तक उनकी पूजा दु: ख की सांत् वना के लिए होने के कारण शांत-भाव से होती थी, आज उसके स्वार्थ-साधना का रूप लेते ही वह अत्यंत उग्र और क्षुधातुर हो उठी।
22.
अर्थ यह हैं कि ” जब ब्राह्मण क्षुधातुर हो तभी राजा के धन का प्रतिग्रह करे अथवा पढ़ा और यज्ञ कराकर जीविका (धनप्राप्ति) क़रे और आपत्तिकाल में भी जब तक इन तीन उपायों से धन प्राप्त कर सके तब तक अन्यों से न करे।
23.
जब हम विपत्तियों के अंधेरे से घिर जाते हैं, उस समय हमारे भीतर ही ऐसा प्रकाश होता है, जो हमें उन मुश्किलों से निकाल लाता है। स्वामी विवेकानंद का चिंतन.. कई बार मैं मृत्यु-मुख में पड़ा हूं। क्षुधातुर रहा हूं, पैर फटे हैं और थकावट आई। लगातार कई दिनों तक मुझे अन्न न्
24.
यहीं पास ही भरद्वाज का आश्रम था नदी-स्नान का प्रतिदिन का जिन का क्रम था धवल नाम का हाथी एक क्षुधातुर था उसे क्या पता, पीछे राजबहादुर था ज्यों ही झपटा मुनि पर, राजा हुए विकल टूट पडे वे तत्क्षण, आहत हुआ धवल प्राणों की रक्षा से हर्षित थे मुनिवर कहा केसरी से-“ प्रिय, मुझ से माँगो वर ”
25.
हम कहते हैं कि किसी अति क्षुधातुर राजा वा राजपुरुष के सामने आये चावल आदि वा डबलरोटी आदि छीन कर न खाने देवें और उनकी दुर्दशा की जावे तो जैसा दुःख इनको विदित होगा क्या वैसा ही उन पशु, पक्षियों और उनके स्वामियों को न होता होगा? ध्यान देकर सुनिये कि जैसा दुःख सुख अपने को होता है, वैसा ही औरों को भी समझा कीजिये ।
26.
द्रौपदी झटपट कुटिया में चली गई और उस जनरक्षक आर्तिनाशक मधुसूदन को मन ही मन पुकारने लगी | पांडवों ने देखा कि बड़े वेग से चार श्वेत घोड़ों से जुता द्वारकाधीश का गरुड़ध्वज रथ आया और रथ के खड़े होते-न-होते वे मयूर मुकुटी उस पर से कूद पड़े | परंतु इस बार उन्होंने न किसी को प्रणाम किया और न किसी को प्रणाम करने का अवसर दिया | वे तो सीधा कुटिया में चले गए और अत्यंत क्षुधातुर की भांति आतुरता से बोले, “ कृष्णे! मैं बहुत भूखा हूं झटपट कुछ भोजन दो | ”
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---इस भजन के पश्चात एक छोटा सा उद्धरण कृष्ण जी से ` सबंधित जो मुझको बहुत प्रेरणादायी लगता है, आपके समक्ष एक बार अर्जुन ने कृष्ण से अपने बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर को कर्ण से बड़ा दानवीर बताते हुए कुछ अभिमान पूर्वक कहा कि युधिष्ठिर से बड़ा दानवीर कर्ण नहीं है, कृष्ण ने कहा चलो देखते हैं और उनको लेकर ब्राह्मण के वेश में महाराज युधिष्ठिर के दरबार में पहुंचे तथा क्षुधातुर होने की बात कही भोजन की शर्त थी कि चन्दन की लकड़ियों पर द्विज देवता अपना भोजन स्वयं बनायेंगें.