वह हैं: रेल को सरकारी सम्पत्ति मान कर उसका जबरन दोहन करना, जंजीर खींच कर जहाँ तहां रेलगाडी खडी करना, साथ में चल रहे यात्रियों से बदसलूकी करना, अपने गली मुहल्लों के मसले हाइलाइट करने के लिये रेल यातायात अवरुद्ध कर देना और बिना टिकट चलने को व्यापक सामाजिक समर्थन होना.
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समीर जी पता नही यह लोग क्या सिद्ध करना चाहते है, क्यो खाम्खां की बहस खडी करना चाहते है, दिल दुखी हो जाता है, अरे किसी ने भी नही देख उस ऊपर वाले को, सब मानते है उसे, उस तक जाने का रास्ता सब का अलग अलग है, ओर जिस ने उसे पा लिया....
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समीर जी पता नही यह लोग क्या सिद्ध करना चाहते है, क्यो खाम्खां की बहस खडी करना चाहते है,दिल दुखी हो जाता है, अरे किसी ने भी नही देख उस ऊपर वाले को, सब मानते है उसे, उस तक जाने का रास्ता सब का अलग अलग है, ओर जिस ने उसे पा लिया.... उसे इस दुनिया से कोई लगाव नही रहा.
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समीर जी पता नही यह लोग क्या सिद्ध करना चाहते है, क्यो खाम्खां की बहस खडी करना चाहते है,दिल दुखी हो जाता है, अरे किसी ने भी नही देख उस ऊपर वाले को, सब मानते है उसे, उस तक जाने का रास्ता सब का अलग अलग है, ओर जिस ने उसे पा लिया.... उसे इस दुनिया से कोई लगाव नही रहा.
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हमारे पास दो तीन तरह के ही रास्ते बच रहते हैं-इस संघर्ष के विरोध स्वरुप एक अन्य व्यवस्था खडी करना चाहते हैं या फिर व्यव्स्था को अपनी नियति मान बैठते हैं या फिर इस दुर्ग के भीतर के बजाए बाहर खडे होकर वार करना चाहते हैं! जो भी हो यह यांत्रिकता, संवेदनशून्यता हमारे भीतर इतनी उतरती जाती है कि कोमल भावनाएं उपहास का विषय लगने लगती हैं!
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जैसे किसी लडकी ने चोटी की है तो वह बाल खोल लेगी या अलग शैली में बाल बान्धेगी, रिबिन या हेयर बेण्ड की अदला-बदली, कमीज के बटनों का क्रम बदला जा सकता है, कमीजों की अदला-बदली, कॉलर मोडना या खडी करना, बाल बखेरे जा सकते हैं, चश्मा पहना या उतारा जा सकता है, खेल के समय जूते-चप्पल पहनने की अनुमति हो तो उनमें भी अदला-बदली हो सकती है।