शराबी-शराबी मेरा नाम हो गयामेरा नाम काहे को बदनाम हो गयाशराबी-शराबी...शायरों ने मुझको लिखा साक़ी जनाबआपने किसलिए मुझे समझा ख़राबऐसा क्या मुझसे कोई काम हो गयाशराबी-शराबी...आप रोज़ मेरी नज़रों से पीते रहेइस नशे के सहारे ही जीते रहेलेकिन ख़ुदा की क़सम बड़े ख़ुदगर्ज़ हैंओ मैने पी मुझपे ये इल्ज़ाम हो गयाशराबी-शराबी...जी आपको देख के याद आया मुझेआपने शीशे से क्यूँ बनाया मुझेपत्थरों की ज़मीं पे गिराया मुझेटूट के देखिए शीशा जाम हो गयाशराबी-शराबी...
22.
रोज़ रात वे सब मिलते हैं एक जगह बैठते हैं सब बिरसा मुंडा, अल्बर्ट एक्का, जतरा, बुधू भगत, सिद्धू कान्हू, तिलकामांझी, नीलांबर पीतांबर मशालों के बॊचोबीच बैठे करते हैं गुफ़्तगू फिर धीरे-धीरे इकठ्ठे होते हैं ढेरों जा चुके लोग अपने-अपने ताबूतों को उठाए तीर-धनिष हथियारों से लैस गाते हैं कई पुराने गीत, जिन में आज की कोई ख़ुदगर्ज़ आवाज़ नहीं वे सब अब लौट कर नहीं आएंगे और हममें ऐसा कुछ नहीं रह गया कि हम उनके गीतों के पीछे-पीछे जा सकें कुछ दूर तक.