प्यारेलाल: उनको ख़ुश करना हो तो हम दोनों क्या करते थे, कभी कभी आए तो चुप बैठे हैं, तो हमें उनको ख़ुश करना हो तो क्या है कि रफ़ी साहब चाय लेके आते थे, तो उनके लिए चाय जो बनती थी वह किसी को नही देते थे, वो ख़ुद पीते थे।
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प्यारेलाल: उनको ख़ुश करना हो तो हम दोनों क्या करते थे, कभी कभी आए तो चुप बैठे हैं, तो हमें उनको ख़ुश करना हो तो क्या है कि रफ़ी साहब चाय लेके आते थे, तो उनके लिए चाय जो बनती थी वह किसी को नही देते थे, वो ख़ुद पीते थे।
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तो हम लोग क्या करते थे कि अगर ख़ुश करना है रफ़ी साहब को तो ख़ुश करने के लिए हम उनको बोलते थे ' थोड़ी चाय मिल जाएगी? ' तो ऐसा करते थे कि जैसे कोई छोटा बच्चा है, तो अगर मस्ती कर रहा है कुछ, अरे भाई उसको चॊकलेट दे ना चॊकलेट, तो बोलने का एक स्टाइल होता है ना, तो उनका ज़हीर था उनका साला, ' अरे ज़हीर, चाय देना इनको चाय ' ।
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जो तुम में फ़रमाँबरदार रहे अल्लाह और रसूल की और अच्छा काम करे हम उसे औरों से दूना सवाब देंगे (7) (7) यानी अगर औरों को एक नेकी पर दस गुना सवाब देंगे तो तुम्हें बीस गुना, क्योंकि सारे जगत की औरतों में तुम्हें अधिक सम्मान और बुज़ुर्गी हासिल है और तुम्हारे अमल में भी दो क़िस्में हैं एक इताअत की अदा, दूसरे रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को राज़ी रखने की कोशिश और क़नाअत और अच्छे व्यवहार के साथ हुज़ूर को ख़ुश करना.