“ बुधराम, क्या बात है भई! खा़मोश क्यों हो? अपने साथियों को सामान रखने के लिए कहो न! ” मुखिया अब भी चुप था, जैसे कुछ सोच रहा हो।
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जे, और बेतरतीब रहन सहन की आदी होती जा रही है, उनके जीने, खाने, सोने, उठने और बोल-व्यवहार का अंदाज़ सबसे जुदा है और हम सब देखते भालते खा़मोश रहने को मजबूर हैं.
23.
झडे़ हुए फूलों की महक से मेरी जीभ बिंध गई एक और शाम खा़मोश गुजर गई मैंने उससे कहा मुझे तुमसे कुछ कहना है उसने मेरी सांसों की गर्मी को छुआ और अपनी ठंडी हथेलियों से मेरा चहरा थाम लिया मुझे पाला पड़ गया एक और शाम सर्द गुजर गई
24.
‘ लड़ रहे हैं कि नहीं बैठ सकते खा़मोश लड़ रहे हैं कि और कुछ सीखा नहीं लड़ रहे हैं कि जी नहीं सकते लड़े बिन लड़ रहे हैं कि मिली है जीत लड़कर ही अभी तक ' प्रश्न तो लेकिन यही है-जीत आखिर कौन सी है?
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खा़मोश करना पवनरहितता प्रशमित करना अभी भी रक देना चुप कर देना शांत हो जाना खा़मोश करना आडम्बर शून्य अचल / स्थिर आडम्बर शून्य बात बंद करना अचल चित्र ख़ामोशी प्रशमित करना फिर भी चुप करना मृदु निश्शब्द निस्तब्धता छिपाना निस्तब्ध शांति से सन्नाटाआ रक देना अभी भी चुप कर देना ज़्यादा
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खा़मोश करना पवनरहितता प्रशमित करना अभी भी रक देना चुप कर देना शांत हो जाना खा़मोश करना आडम्बर शून्य अचल / स्थिर आडम्बर शून्य बात बंद करना अचल चित्र ख़ामोशी प्रशमित करना फिर भी चुप करना मृदु निश्शब्द निस्तब्धता छिपाना निस्तब्ध शांति से सन्नाटाआ रक देना अभी भी चुप कर देना ज़्यादा
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मालूम नहीं कहां गया ख़ज़ाना, सरकारी बंदों ने लूटाया लुटा दिया!जब दो हज़ार देते हो तो वह कुछ भी नहीं,दो हज़ार मांग कर तो देखो!अरे निकम्मो!अपने सपने हम टुकड़े टुकड़े में देखें-यह आदत भले हमारी पर तुम खा़मोश रहो!ये जो मुंह खोलेबोल रहे हैं अनवरतआलोचना पंडितऔर लिखेंगे जो लम्बी तक़्रीरेंउलट पुलट कर,वे तुमको भरमा देंगे,भटका भी देंगे।
28.
जिंदगी तेरी मदहोश नज़रों के सिवा कुछ भी नही जिंदगी तेरी बाहों के सिवा कुछ भी नही जिंदगी अल्फाज़ हैं तेरी खा़मोश मोहब्बत के जिंदगी नाज़ हैं तेरी जुनुन ए सोहबत के जिंदगी तेरे लबों पे तैरती मुस्कान है जिंदगी तेरी मोहब्बत का पयाम है पशेमान दिल की गहराई में जिंदगी तेरे आंचल की परछाई है दामन-ए-आकाश के समन्दर में जिंदगी ख्वाबों की अंगड़ाई है.