बगीची के आगे आँगन और बगीची की सीमारेखा तय करती, तीन अँगुल चौड़ी और आधा बालिश्त गहरी, एक खुली नाली थी, जिसे महरी सींक के झाड़ू से, आदि से अंत तक एक ही ‘ स्ट्रोक ' में साफ़ करती आँगन की दो दिशाएँ नाप जाती थी।
22.
न ये खुली नाली वाले आँगन जानते हैं, न छतों पर सोना, न आँगन में देर रात तक चारपाइयाँ सटाए खुसर-पुसर बतियाना, न गर्मी में बान की चारपाई पर केवल गीली चादर बिछा कर सोने का मज़ा, न सत्तू का स्वाद, न कच्ची लस्सी, न कड़े के गिलास, न चूल्हे की लकड़ियों के अंगार पर फुलाई गरमागरम पतली छोटी चपातियाँ, न भूसी में लिपटी बर्फ़ की सिल्ली से तुड़वाकर झोले में टपकाते लाई बर्फ़, जिसे झोले सहित गालों से छुआया जा सकता है...