अनहोनी, भ्रष्टाचार, साम्राज्यवादी ताकतों, फिरकापरस्त नीतियों, जन विरोधी नीतियों के खिलाफ खून खौलना भी जरूरी है-‘
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बेबस हमें बनाया गया, यह भी मैं नहीं कहूंगा लेकिन यह जरूर कहूंगा कि हमारा खून अब खौलना बंद हो चुका है।
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उन्हें यह भान है कि चाय बनने के लिए पानी को खौलना होता है स्वाद के लिए चायपती को देनी पड़ती है आहुति।
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फ़िर सबने समझाया समझ में आ गया अब जी रहा हूं एक टीस के साथ पर सच अब मेरे खून ने खौलना लगभग बंद कर दिया.
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रक्षक को ही भक्षक बने देख स्वाभाविक ही किसी भी संवेदनशील का खून खौलना और आवेश में उसके द्वारा अस्त्र उठा लेना, एक सामान्य बात है...
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दूसरी बात कि, ये बेहद कूटनीतिक बातें हैं,इनपर वैसे कोई कदम नहीं उठाया जा सकता जैसे आप सोचते हैं,थोड़ा धैर्य रखिये.खून का खौलना वाजिब है पर उसे खौलाना नावाजिब.
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एक बार फ़िर से हमारी “व्यवस्था” एक होनहार और काबिल व्यक्ति के गले की फ़ाँस बन गई, टीवी पर किरण बेदी की आँखों में आँसू देखकर किसी भी देशभक्त व्यक्ति का खून खौलना स्वाभाविक है ।
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एक बार फ़िर से हमारी “ व्यवस्था ” एक होनहार और काबिल व्यक्ति के गले की फ़ाँस बन गई, टीवी पर किरण बेदी की आँखों में आँसू देखकर किसी भी देशभक्त व्यक्ति का खून खौलना स्वाभाविक है ।
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जिस प्रकार आग पर चढे कडाहेमें जब तक आंच नहीं लगती, तब तक उसमें भरे जल में कोई हलचल दिखाई नहीं देती, किंतु जैसे-जैसे आग तेज होती है जल में हलचल, उबलना, खौलना, भाप बनना सब प्रारंभ हो जाता है।
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अब कोई श को ल बोले और सीधी सपाट गली को गैयेलो कह दे तो मुझ जैसे परम्परावादी का खून खौलना स्वाभाविक है.....:) मगर आपका खून क्यों खौल रहा है:)? आपकी यह आदत है कि आप अपनी गलती नहीं मानते...