उस ब्रह्म को जानने के लिए चित कि शुद्धता आवश्यक है, वह ब्रह्म ज्ञान गम्यता से परे है, ब्रह्म का ध्यान करके ही हम ‘ मोक्ष ' को प्राप्त कर सकते हैं, उसी का आधार प्राप्त करके सभी जीवों में चेतना का समावेश होता है, वह अखण्ड विग्रह रूप में चारों ओर व्याप्त होता है.
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‘ माया ' नाम इस कविता में निराला कहते हैं:-तू किसी भूले हुए की भ्रांति है शांति पथ पर या किसी की गम्यता शीत की नीरस निठुर तू यामिनी या वसन्त विभावरी की रम्यता सृष्टि के अन्तःकरण में तू बसी है किस के भोग-भ्रम की साधना या कि लेकर सिद्धि तू आगे खड़ी त्यागियों के त्याग की आराधना
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नारी को लम्बे गर्भकाल के दौरान ही नहीं शिशुओं के एक सुदीर्घ लालन पालन अवधि में भी उसे सुरक्षा की दरकार रहती है-यह साहचर्य के बिना संभव नहीं! और यही कारण है कि मनुष्य प्रजाति उत्तरोत्तर एकनिष्ठ-मोनोगैमस होती गयी है-पुरुष के मन में आज भी बहु नारी गम्यता की एक ललक उसके अतीत की एक प्रतीति मात्र है जबकि प्रक्रति उसका मानों कान पकड़कर उसे एकनिष्ठ बनाती आयी है जो प्रजाति रक्षा के लिए अनिवार्य है-सही है, नारियों में परपुरुष गामिता की प्रवृत्ति पुरुष सरीखी नही है.