रोगों के निवारण के लिए गोमूत्र का सेवन कई तरह की विधियों से किया जाता है जिनमें पान करना, मालिश करना, पट्टी रखना, एनीमा और गर्म सेंक प्रमुख हैं।
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उपरोक्त सेंकों के अतिरिक्त गर्म जल से भरी बोतलों, रबड़ के थैलों एवं छल्लों तथा काष्ठौषधि मिश्रित जल से भी सेंक दिये जाते हैं, जो गर्म सेंक के अन्तर्गत ही आते हैं।
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कालानमक: कालानमक को पीसकर पोटली बना लेते हैं फिर इसे घी में डुबोकर किसी बर्तन के ऊपर रखकर हल्का गर्म सेंक करने से भगोष्ठ और भगनाक के दर्द और पीड़ा में लाभ मिलता है।
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इसमें केवल इतना अन्तर होता है कि इसमें ठंडा सेंक बहुत कम समय (लगभग 1 मिनट) तक दिया जाता है तथा गर्म सेंक अधिक समय तक (लगभग 4 से 5 मिनट) तक दिया जाता है।
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खुजली किसी अंग विशेष में हो तो वहाँ पर 5 मिनट गर्म सेंक देकर दिन में दो बार 30 मिनट के लिए गीली मिट्टी की ठण्डी पट्टी लगाएं और यदि पूरे शरीर में हो तो पूरे शरीर का गीली मिट्टी स्नान लें।
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पेट के कैंसर में अगर पेट में जलन, बेचैनी हो, रोगी को थोड़ा पानी पीने का मन करता हो एवं गर्म सेंक से आराम मिलता हो तो इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर आर्सेनिक औषधि का सेवन करना चाहिए।
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प्रातः शौच आदि से निवृत्त होकर खाली पेट पेड़ू पर गर्म पानी की थैली से 10 मिनट गर्म सेंक करने के बाद पेड़ू पर 45 मिनट के लिए गर्म मिट्टी की पट्टी लगाएं (गर्म पट्टी से आशय है, जैसा कि पीछे पट्टी बनाने की विधि में बताया जा चुका है कि मिट्टी की पट्टी लगाकर ऊपर से ऊनी कपड़े से ढक दें।