माता-पिता की इच्छा के विपरीत वर और कन्या द्वारा स्वयं एक-दूसरे को पति-पत्नी मानकर किया गया प्रेम विवाह गांधर्व विवाह कहा जाता है।
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दुष् यंत ने भी शकुंतला से गांधर्व विवाह कर लिया ; किंतु बाद में उस संबंध को स् वीकार करने में उन् हें कठिनाई होने लगी।
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बौधायन का कहना है कि कुछ लोग गांधर्व विवाह की इसलिए प्रशंसा करते हैं क्योंकि यह स्त्री-पुरुष की इच्छा से होता है, इसलिए यह आदर्श है।
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प्रेम-विवाह एक पश्चिमी संस्कृति से हैं, ये कहना अत्यंत अनुचित है, क्योंकी हमारे शास्त्रों में गांधर्व विवाह या प्रेम लग्न के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं।
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मालिनी और गंगा के संधिस्थल पर रावली के समीप कण्व मुनि का आश्रम था, जहाँ शिकार के लिए आए राजा दुष्यंत ने शकंुतला के साथ गांधर्व विवाह किया था।
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मालिनी और गंगा के संधिस्थल पर रावली के समीप कण्व मुनि का आश्रम था, जहाँ शिकार के लिए आए राजा दुष्यंत ने शकंुतला के साथ गांधर्व विवाह किया था।
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मालिनी और गंगा के संधिस्थल पर रावली के समीप कण्व मुनि का आश्रम था, जहाँ शिकार के लिए आए राजा दुष्यंत ने शकंुतला के साथ गांधर्व विवाह किया था।
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अथवा यदि कोई सकाम पुरुष किसी सकामा युवती से मिलकर एकांत में वैवाहिक संबंध में प्रतिबद्ध होने का निर्णय कर लेता था, तो इसे भी गांधर्व विवाह कहा जाता था।