जीव-दया के आदर्श में मानव और मानवेतर का भेद प्रखर रूप से सामने आया और उत्पीड़ित मानव की सहायता तथा बंदरों-चींटियों को आटा खिलाने में न केवल एक मौलिक गुणात्मक भेद देखा गया बल्कि एक विरोध भी: दूसरे से पहला न केवल बेहतर था, बल्कि दूसरा अपराध था क्योंकि वह पहले में बाधक था।