द्विशिरस्का दो शिरों द्वारा अंसकूट और स्कंध संधि के भीतर अंस-उलूखल (glenoid cavity) के ऊपर के पिंडक से निकलकर, सारी बाहु के सामने होती हुई नीचे जाकर, कंडरा में अंत हो जाती हैं, जो कुहनी के सामने से निकलकर, अग्रबाहु के ऊर्ध्व भाग मे बहिष्प्रकोष्ठास्थि के शिर से नीचे स्थित गुलिका के खुरदरे भाग पर लग जाती है।
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बीच में अपना असर कम करती है, जैसे एक बच्चे का मिजाज होता है और उसी तरह का मिजाज बुजुर्ग के अन्दर देखा जाता है, उसी प्रकार से शनि की शुरुआत भी गुलिका के द्वारा होती है, इसी लिये कहा भी गया है कि शनि के आगे और पीछे के भाव भी शनि के प्रभाव से जुडे होते है।
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यही बात अगर हम एक फ़ूलो वाली बेल के लिये मानलें तो गुलिका और शनि के प्रभाव से बेल के पत्ते गहरे हरे रंग के होंगे, उसके जो फ़ूल निकलेंगे वे रात को चमकने वाले सफ़ेद रंग के होंगे, वे किसी भी तरह से संसार में काम आने वाले फ़ूल नहीं होंगे, जब तक उन फ़ूलों को प्रयोग करने का समय होगा उस समय तक वे उजाले के कारण या तो झड चुके होंगे।
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भारत में उपरोक्त आठों के कुल का ही क्रमश: विस्तार हुआ जिनमें निम्न नागवंशी रहे हैं-नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा इत्यादी नाम के नाग वंश हैं।
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शनि के अनुसार गुलिका अपना असर देती है, शनि जब अच्छी नजर से देखता है तो गुलिका आराम का असर देती है, शनि जब बुरी नजर से देखता है तो गुलिका भी बुरा असर देती है, लेकिन शनि और गुलिका का सम्बन्ध त्रिक भावों से होता है तो या तो गुलिका के द्वारा भेजे जाने वाले संदेशे के अनुसार अपना असर नही दे पाते है या फ़िर गुलिका एक बार में ही बहुत बुरा संकट देकर चली जाती है।
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शनि के अनुसार गुलिका अपना असर देती है, शनि जब अच्छी नजर से देखता है तो गुलिका आराम का असर देती है, शनि जब बुरी नजर से देखता है तो गुलिका भी बुरा असर देती है, लेकिन शनि और गुलिका का सम्बन्ध त्रिक भावों से होता है तो या तो गुलिका के द्वारा भेजे जाने वाले संदेशे के अनुसार अपना असर नही दे पाते है या फ़िर गुलिका एक बार में ही बहुत बुरा संकट देकर चली जाती है।
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शनि के अनुसार गुलिका अपना असर देती है, शनि जब अच्छी नजर से देखता है तो गुलिका आराम का असर देती है, शनि जब बुरी नजर से देखता है तो गुलिका भी बुरा असर देती है, लेकिन शनि और गुलिका का सम्बन्ध त्रिक भावों से होता है तो या तो गुलिका के द्वारा भेजे जाने वाले संदेशे के अनुसार अपना असर नही दे पाते है या फ़िर गुलिका एक बार में ही बहुत बुरा संकट देकर चली जाती है।
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शनि के अनुसार गुलिका अपना असर देती है, शनि जब अच्छी नजर से देखता है तो गुलिका आराम का असर देती है, शनि जब बुरी नजर से देखता है तो गुलिका भी बुरा असर देती है, लेकिन शनि और गुलिका का सम्बन्ध त्रिक भावों से होता है तो या तो गुलिका के द्वारा भेजे जाने वाले संदेशे के अनुसार अपना असर नही दे पाते है या फ़िर गुलिका एक बार में ही बहुत बुरा संकट देकर चली जाती है।
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शनि के अनुसार गुलिका अपना असर देती है, शनि जब अच्छी नजर से देखता है तो गुलिका आराम का असर देती है, शनि जब बुरी नजर से देखता है तो गुलिका भी बुरा असर देती है, लेकिन शनि और गुलिका का सम्बन्ध त्रिक भावों से होता है तो या तो गुलिका के द्वारा भेजे जाने वाले संदेशे के अनुसार अपना असर नही दे पाते है या फ़िर गुलिका एक बार में ही बहुत बुरा संकट देकर चली जाती है।
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शनि के अनुसार गुलिका अपना असर देती है, शनि जब अच्छी नजर से देखता है तो गुलिका आराम का असर देती है, शनि जब बुरी नजर से देखता है तो गुलिका भी बुरा असर देती है, लेकिन शनि और गुलिका का सम्बन्ध त्रिक भावों से होता है तो या तो गुलिका के द्वारा भेजे जाने वाले संदेशे के अनुसार अपना असर नही दे पाते है या फ़िर गुलिका एक बार में ही बहुत बुरा संकट देकर चली जाती है।