यों तो किसी सभा या परिषदु से बुलावा आया, और वहाँ जाने में विशेष कष्ट न उठाना पड़ा, तो मैं चला जाता हूँ ; परन्तु जहाँ विशेष रूप से गुल-गपाड़ा हो, वहाँ कभी नहीं गया।
22.
ताकि मैं तुम्हें और तुम्हारी याद को अपनी काजल से स्याह हुए आंखो में अगली सुबह को भी पा सकूं.... मेरी आंखे... जो दुनिया भर के लिए आग्नेय हो सकती हैं, लेकिन तुम जो हमेशा गुल-गपाड़ा मचाते हो, तो हल्ला-गुल्ला करते हो उसके सामने यह पता नहीं क्यों निर्निमेष हो जाती हैं...