अब मेरा व्यवस्थित जीवन था, मैं एक स्वतंत्र, स्वच्छ, सुरुचि सज्जित घर में रहता था, घर में मेरी सुंदर, स्नेहमयी, प्रसन्न वदना संगिनी थी और सबके ऊपर बस आज-कल में नवजीवन के नव कल्लोल से यह घर गूंजने वाला था।
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रेल की मस्ती भरी चाल, धड़धड़ाती आवाज, तेज गति में पटरियों के बीच बदलाव, पहाड़ों के बीच खुदी गुफाएं, नदी पर बने पुलों की गड़गड़ाहट, हरी-लाल झंडियां, इंजन का जोरदार भौंपू, प्लेटफाॅर्म पर गूंजने वाला ‘टिंग-टांग-टिंग', चाय वालों की ‘चाय-चाय', यात्रियों की ‘कांय-कांय' इस सबमें एक अजीब सी कशिश होती है।
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जहां राश्ट्रीय धरना स्थल पर यहां पर चल रहे अन्य आंदोलनकारी अपना गला फाड फाड कर अपनी मांगों के समर्थन में नारेबाजी या भाशणबाजी कर रहे थे वहीं कोलाहल में गूंजने वाला जंतर मंतर मूक बधिरों के हाथ के इषारों के नजारों से खामोष हो कर भी लोगों का ध्यान आकृश्ठ कर रहा था।
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हाँ, वह यह अवश्य सोच रहा है कि सदैव लूम के खटर-पटर से गूंजने वाला यह मुहल्ला कब्र में लेटे किसी मुर्दे की तरह शांत है, गोश्त पकाये जाने जैसी खुशबू शायद ही कभी-कभी कहीं-कहीं से आ रही है, जुठन के हड्डी और गोश्त की तलाश में घूमने वाले आवारा कुत्तों ने मुहल्ला छोड़ दिया है।
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अगर हमारी बात को समझना ज़रा भी कठिन लगे तो याद करें लता मंगेशकर की आवाज़ में गूंजने वाला यह गीत: “ ऐ मेरे वतन के लोगों! ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कु़रबानी ” ।.............. (जारी) हमारा देस जग से भला संसार से प्यारा।
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रेल की मस्ती भरी चाल, धड़धड़ाती आवाज, तेज गति में पटरियों के बीच बदलाव, पहाड़ों के बीच खुदी गुफाएं, नदी पर बने पुलों की गड़गड़ाहट, हरी-लाल झंडियां, इंजन का जोरदार भौंपू, प्लेटफाॅर्म पर गूंजने वाला ‘ टिंग-टांग-टिंग ', चाय वालों की ‘ चाय-चाय ', यात्रियों की ‘ कांय-कांय ' इस सबमें एक अजीब सी कशिश होती है।
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इस प्रणवाक्षर (प्रणव + अक्षर) भी कहते है प्रणव का अर्थ होता है तेज गूंजने वाला अर्थात जिसने शुन्य में तेज गूंज कर ब्रह्माण्ड की रचना की | वैसे तो इसका महात्म्य वेदों, उपनिषदों, पुराणों तथा योग दर्शन में मिलता है परन्तु खासकर माण्डुक्य उपनिषद में इसी प्रणव शब्द का बारीकी से समझाया गया है | माण्डुक्य उपनिषद के अनुसार यह ओ ३ म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है-अ, उ, म.