स्पिरिटतल से बिंदुओं का जो उन्नयन मिलता है, वह जियोइड के सापेक्ष होता है, न कि पार्थिव गोलाभ के।
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स्पिरिटतल से बिंदुओं का जो उन्नयन मिलता है, वह जियोइड के सापेक्ष होता है, न कि पार्थिव गोलाभ के।
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मानचित्र हेतु जियोइड को ऐसा गोलाभ मान लिया जाता है जो पृथ्वी के या उसके किसी भाग के, जिससे हमें सरोकार हो, निकटतम हो।
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मानचित्र हेतु जियोइड को ऐसा गोलाभ मान लिया जाता है जो पृथ्वी के या उसके किसी भाग के, जिससे हमें सरोकार हो, निकटतम हो।
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भूपरिधि निर्धारण की विधि में सुधार तभी संभव हुआ जब 17वीं 18वीं शताब्दियों के बीच पृथ्वी की आकृति नारंगी के मार्निद, चपटी गोलाभ (
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घूर्णन सत्य माना जाने लगा, यह कल्पना प्रबल हो चली कि पृथ्वी गोलाकार न होकर लघु अक्ष (oblate) गोलाभ है, जो ध्रुवों पर चपटी है।
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मानचित्र हेतु जियोइड को ऐसा गोलाभ मान लिया जाता है जो पृथ्वी के या उसके किसी भाग के, जिससे हमें सरोकार हो, निकटतम हो।
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यद्धपि, आकाशगंगा के पिंड और M31 की तुलना की जाना संभव है और M31 के गोलाभ वास्तव में का घनत्व उच्च तारकीय घनत्व से काफी अधिक है.
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भूपरिधि निर्धारण की विधि में सुधार तभी संभव हुआ जब 17वीं 18वीं शताब्दियों के बीच पृथ्वी की आकृति नारंगी के मार्निद, चपटी गोलाभ (oblate spheroid) होने की आशंका जड़ पकड़ने लगी।
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इस धारणा के विरोध में फ्रांस के कैसिनस का कहना था कि यदि पृथ्वी गोलाभ है तो विषुवत् से ध्रुव की ओर जाने पर एक अंश अक्षांश की दूरी बढ़ती जानी चाहिए।