भारत से आयरर्लैंड तक फैले हुए ग्राम-समाज को एंगेल्स ने ' कम्युनिस्ट घोषणापत्र ' के अंग्रेजी संस्करण (1888) की एक टिप्पणी में ' आदिम साम्यवादी समाज ' कहा था।
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तीसरी कसम ' में यह गालियां देने वाला ग्राम-समाज किस तरह कंपनी की पतुरिया में अपनी सिया-सुकुमारी खोज लेता है यह गालियों की ऊपरी दृश्य सतह के परे जाकर उस पवित्र मन-मानस की अन्तःपरतों को सहानुभूति से समझने पर ही जान सकिएगा.
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ग्राम-समाज की जमीन पर गोबर फेंककर घूरा बनाने से शुरू करते हुए धीरे-धीरे अपना मकान बना लेना, पौधे रोपकर आस-पास की जमीन पर अपना हक जताना, मवेशियों के खूंटे और नाँद गाड़कर धीरे-धीरे वहाँ काबिज हो जाना गाँव के लोगों में बिलकुल आम बातें हैं।
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प्रेमचंद राय साहब, कुंवर दिग्विजय नारायण सिंह एवं खन् ना सरीखे जमींदारों, राजाओं एवं पूंजीपतियों की अंग्रेजी राज व राष् ट्रीय आंदोलन के प्रति दुहरी निष् ठा के पाखंड का खुलासा करने के साथ-साथ ग्राम-समाज के बीच से उपजे किसान के देसी शत्रुओं को भी कटघरे में खड़ा करते हैं, जो धर्म, मरजाद की मिथ् या चेतना तथा किसान की दीनता को शोषण का हथियार बनाते हैं।