समय को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है;
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समय को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है;
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ऐसे ही इस जगत में अपने-अपने फुरने पैदा होते हैं, वैसे-वैसे विचारों में जीव घटीयंत्र (अरहट) की नाईं भटकता रहता है।
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कैमरे से संबद्ध घटीयंत्र दूरदर्शी को ध्रुवीय अक्ष के चारों ओर इस गति से घुमाता है कि उसका एक चक्कर एक नाक्षत्र दिवस (
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पानी का घटीयंत्र बनाने के लिए किसी पात्र में छोटा सा छेद कर दिया जाता था, जिससे पात्र एक घंटी में पानी में डूब जाता था।
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पानी का घटीयंत्र बनाने के लिए किसी पात्र में छोटा सा छेद कर दिया जाता था, जिससे पात्र एक घंटी में पानी में डूब जाता था।
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पृथ्वी के घूर्णन के कारण गतिमान प्रतीत होनेवाले आकाशीय पिंडों का चित्र लेने के लिए कैमरे के दूरदर्शी को इस प्रकार आरोपित करते हैं कि वह घटीयंत्र (
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कैमरे से संबद्ध घटीयंत्र दूरदर्शी को ध्रुवीय अक्ष के चारों ओर इस गति से घुमाता है कि उसका एक चक्कर एक नाक्षत्र दिवस (sidereal day) में पूरा होता है।
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जब यह स्फुरता संतों और शास्त्रों के अनुसार हो तब पुरुष परम शुद्धि को प्राप्त होता है और जो शास्त्रों के अनुसार न हो तो जीव वासना के अनुसार भाव-अभावरूप भ्रमजाल में पड़ा घटीयंत्र की नाई भटककर कभी शान्तिमान नहीं होता।
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आदमी ईश्वरीय विधान को छोड़कर ज्यों-ज्यों इन्द्रियों को पोसकर, अहंकार को पोसकर, किसी को नोंचकर, किसी को शोषकर जीना चाहता है तो अशान्त रहता है, भयभीत रहता है, मरने के बाद भी घटीयंत्र की नाँई कई योनियों के चक्कर में जाकर दुःख भोगता है।