वैसे भी कभी घर का कोना कोना सुरुचि पूर्ण ढंग से सजाने वाली सुषी ने गृहस्थी के प्रति जो निर्लिप्तिता अपना ली थी वह मुझे ही झूठा सिध्द करती।
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फिर दीप मालाएं सजाई जाती हैं | घर का कोना कोना दीपज्योति से जगमगाने लगता है | आज कल फुलझड़िया, अनार, बम-पटाखे भी फोडे जाते है |
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अमृता के पास शब्द थे इमरोज़ के पास सुकून का जादू जिससे मिला उसे दिया निःसंदेह अमृता ख़ास थी तो उसके घर का कोना कोना महक उठा इस सुकून से...
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काम, क्रोध आदि की भीषणता दिखाने के लिए वह ऐसे प्रबल चोरों को सामने करता है जिनका घर का कोना कोना देखा हो और जो दिन रात चोरी की ताक में रहते हों।
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कब कोई धमाका घर का कोना खाली कर दे वसन्त आए भी तो कैसे? चिमनियों से निकलते काले धुएं ने पूरी दुनिया को घेर रखा है वसन्त दुविधा में है राजनीतिक उठापटक...
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चोट खाकर संभलना, टूटी माला के मोती पिरोना, नए बटन टांकना, फटी जेबें सिलना, हर हफ्ते जाले उतारना, घर का कोना कोना साफ़ रखना, फटे दूध का छेना बनाना, फ्यूज़ ठीक करना, छोटी-मोटी मरम्मत करना..
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“हम तो फकत तुलसी पौध की मानिंद है, जो बड़ा होकर भी छोटा ही रहा, पूज्य रहकर घर का कोना ही पा लिया, और घूमते-फिरते किसी शख्स ने, जब चाहा नोंचा-खरौंचा, पत्ता तोड़ा और खा लिया । ''-
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अमृता के पास शब्द थे इमरोज़ के पास सुकून का जादू जिससे मिला उसे दिया निःसंदेह अमृता ख़ास थी तो उसके घर का कोना कोना महक उठा इस सुकून से...सीधे दिल में उतरता है हर एक शब्द..... एक तस्वीर सी बन जाती है......
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वक़्त की नाजुकता रक्त के उबाल को किशोर ने समय दिया फिर क्या था समय अमृता को ले आया.... अमृता के पास शब्द थे इमरोज़ के पास सुकून का जादू जिससे मिला उसे दिया निःसंदेह अमृता ख़ास थी तो उसके घर का कोना कोना महक उठा इस सुकून से...
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रात को बेटा खेल रहा है लिओ टौयेस और फन स्कूल से माँ नए रंगीन महंगे खिलौनों को सजा रही है कमरे में उधर बाई के घर में भी गूँज रही है किलकारी टूटी हुई गुडिया भी लग रही है उसे सबसे प्यारी बन्दर की एक आँख नहीं है मोटर है जो चलती नहीं बन्दूक जो बस बन्दूक ही है इन टूटे फूटे खिलौनों को सजा रहा है सलोना किसी के घर के कचरे से महक रहा है इस घर का कोना कोना........