मिट्टी से हाथ रगड़ कर धोते हुए गीतकार रमेश रंजक ने मुझसे पूछा-‘ संशोधनवाद तो अच्छी चीज़ होनी चाहिए, इसे इतना बुरा क्यों माना जा रहा है? ' मैं फटी आंखों से उन्हें देखता रह गया-‘ कमाल है रंजक जी! दो दिन से संशोधनवाद पर हर कोई घिस्सा लगा रहा है और किस्सा आपकी समझ में ही नहीं आया! ' वे अपने भोले अहंकार में बोले-‘ आज तक हमने अपने किसी गीत में किसी से संशोधन नहीं करवाया, नए लोगों के कितने ही गीतों में संशोधन किए है।