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चतुष्पाद उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
21.लगभग 20 मिलियन वर्षों बाद (340 Ma), उल्वीय अण्डों की उत्पत्ति हुई, जो कि भूमि पर भी दिये जा सकते थे, जिससे चतुष्पाद भ्रूणों को अस्तित्व का लाभ प्राप्त हुआ.

22. [66] ऐसा माना जाता है कि शायद मछली के पंख पैरों के रूप में विकसित हुए, जिससे पहले चतुष्पाद प्राणियों को सांस लेने के लिये अपने सिर पानी से बाहर निकालने का मौका मिला.

23.कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है।

24.पूर्ण-स्थलीय जीव की उत्पत्ति-भूमि पर अण्डों की उत्पत्ति-(340 Ma) हुई, जो कि भूमि पर भी दिये जा सकते थे, जिससे चतुष्पाद भ्रूणों को अस्तित्व का लाभ प्राप्त हु आ.

25.होने पर, चतुष्पाद अर्थात् सत्य दानादि चार चरण वाला, यह ध्र्म भी चरितार्थ हुआ, और सारा पाप नष्ट हुआ, काम क्रोधदि जो चित्त के दोष हैं, वे भी समाप्त हुए, सुख देने वाला समय उपस्थित हुआ, और आनन्दमहौषधि् की

26.संधिपाद प्राणी.... चतुष्पाद प्राणी का अवतरण..... जल-स्थल (उभय) चर...... पक्षियों व सरीसृपों की उत्पत्ति.... पृथ्वी पर जीवन.... हिम-यु ग... विलोपन.... डायनासोर् स..... स्तनधारियों का उद्भव.... आवृत्त-बीजी-पुष्पों का विका स...

27.चतुष्पाद प्राणी का विकास (380 से 375 Ma के लगभग) हुआ-उभयचरों की उत्पत्ति-मछली के पंख पैरों के रूप में विकसित हुए, जिससे पहले चतुष्पाद प्राणियों को सांस लेने के लिये अपने सिर पानी से बाहर निकालने का मौका मिला.

28.चतुष्पाद प्राणी का विकास (380 से 375 Ma के लगभग) हुआ-उभयचरों की उत्पत्ति-मछली के पंख पैरों के रूप में विकसित हुए, जिससे पहले चतुष्पाद प्राणियों को सांस लेने के लिये अपने सिर पानी से बाहर निकालने का मौका मिला.

29.ओंकार रूपी आत्मा का जो स्वरूप उसके चतुष्पाद की दृष्टि से इस प्रकार निष्पन्न होता है उसे ही ऊँकार की मात्राओं के विचार से इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि ऊँ की अकार मात्रा से वाणी का आरंभ होता है और अकार वाणी में व्याप्त भी है।

30.हे शम्भो! मेरे मानस कमलरूपीनगर में राजचूडामणि के समान मान्य कैवल्य प्रदान करने वाले आपके विराजमान होने पर, चतुष्पाद अर्थात् सत्य दानादि चार चरण वाला, यह ध्र्म भी चरितार्थ हुआ, और सारा पाप नष्ट हुआ, काम क्रोधदि जो चित्त के दोष हैं, वे भी समाप्त हुए, सुख देने वाला समय उपस्थित हुआ, और आनन्दमहौषधि् की लतायें पल्लवित, पुष्पित तथा पफलित हुई।

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