मिटन ने 433 ई. पू. में देखा कि 235 चन्द्रमास और 19 सौर वर्ष अर्थात् 19*12 = 228 सौर मासों में समय लगभग समान होता है-इनमें लगभग 1 घंटे का ही अन्तर होता है।
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भारतीय चन्द्रमास का नियम यह है कि जिस माह जो संक्रान्ति (सूर्य का एक राषी सीमा से निकल कर दूसरी राशी सीमा में प्रवेश करना) हो उसी नाम पर माह का नाम होता है।
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मैटोनिक चक्र मिटन ने 433 ई. पू. में देखा कि 235 चन्द्रमास और 19 सौर वर्ष अर्थात् 19*12 = 228 सौर मासों में समय लगभग समान होता है-इनमें लगभग 1 घंटे का ही अन्तर होता है।
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मगर हर दो या तीन वर्षों में एक मास बढ़ा दिया जाता है, जिसे ‘ मलमास ', ‘ पुरूषोत्तममास ' या ‘ अधिकमास ' कहते हैं, उस चन्द्र वर्ष में 13 चन्द्रमास होते हैं।
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इस मास में सूर्य कान्तिहीन होता है तथा चन्द्रमा बलवान होता है अतः इसे आचार्य वराहमिहिर ने चन्द्रमास कहकर परिभाषित किया सूर्य संक्रान्ति नहीं होने से “ मलमास ” कहा गया जो पुरूषो के लिए उत्तम होता है ।
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मैटोनिक चक्र मिटन ने 433 ई. प ू. में देखा कि 235 चन्द्रमास और 19 सौर वर्ष अर्थात् 19 * 12 = 228 सौर मासों में समय लगभग समान होता है-इनमें लगभग 1 घंटे का ही अन्तर होता है।
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सनातन तिथियाँ तिथि अर्थात दिन या दिनांक, वैदिक कलेंडर में जो चन्द्रमास या चन्द्रमा की गति पर आधारित कलेंडर है, उसमे तिथियों के नाम संस्कृत गणना पर रखे गये हैं, वैदिक कलेंडर कई प्रकार के हैं, सबसे अधिक प्रचलित चन्द्रमास ही है l
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सनातन तिथियाँ तिथि अर्थात दिन या दिनांक, वैदिक कलेंडर में जो चन्द्रमास या चन्द्रमा की गति पर आधारित कलेंडर है, उसमे तिथियों के नाम संस्कृत गणना पर रखे गये हैं, वैदिक कलेंडर कई प्रकार के हैं, सबसे अधिक प्रचलित चन्द्रमास ही है l
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इसलिए आत्माकारक सूर्य की 12 ज्योतियों से संयुक्त शिव की आराधना चन्द्रमास के 14 वें दिन एवं अमावस्या के एक दिन पूर्व जब सूर्य एवं चन्द्रमा एक दूसरे के निकट आने को तैयार रहते हैं ऐसे में “ महाशिवरात्रि ” का महापर्व शिव आराधना हेतु सर्वाेत्तम फलदायक होता है।
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शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कृष्ण पक्ष की अमावस्या की समयावधि को चन्द्रमास तथा संक्रांति से दूसरी संक्रांति तक की अवधि को सौरमास कहा जाता है, तीस दिन की समयावधि को सावन मास तथा चद्रमा के अश्विनी आदि नक्षत्र चक्र के भ्रमण काल को नक्षत्रमास कहा जाता है।