साथ में, उस शाम की बातचीत में मृगांका ने जगत्, ईश्वर, ब्रह्म और चर अचर जैसे विषयों पर एक लंबा व्याख्यान दिया था।
22.
सिर्फ ग्रंथों को पढने लिखने से ही ज्ञान नहीं आता, गंभीर चिंतन मनन औरसमस् त चर अचर के प्रति प्रेम से इसमें निखार आता है।
23.
यह जानकर इस संपूर्ण संसार चर अचर जगत को स्वयं के जैसे ही देखना चाहिये क्योंकि विष्णु ही इस संसार का रूप धारण किये हुये हैं ।
24.
आज ताकतवर की ही चल रही है, अपनी अपनी ताकत का हम सब दुरूपयोग कर रहे हैं, ऐसे में समस् त चर अचर मुसीबत में हैं।
25.
व्यक्ति का धर्म रिश्तों, सम्बन्धों, समाज और सम्पूर्ण प्रकृति के चर अचर के प्रति कैसा होना चाहिए, यह जानते हुए भी वह धर्म से विरत है।
26.
यह भी सर्वमान्य एवं सर्वविदित है कि ब्रह्मांड में स्थित समस्त चर अचर जगत में आपसी संबंध है तथा समस्त ब्रह्मांड एक लयबद्ध तरीके से निश्चित नियमों के आधार पर कार्य करता है।
27.
इस ब्रह्माण्ड मे जो कुछ भी गतिशील अर्थात चर अचर पदार्थ है, उन सब मे ईश्वर अपनी गतिशीलता के साथ व्याप्त है उस ईश्वर से सम्पन्न होते हुये तुम त्याग भावना पूर्वक भोग करो।
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अर्थात-अखिल विश्व मे जो कुछ भी गतिशील अर्थात चर अचर पदार्थ है, उन सब मे ईश्वर अपनी गतिशीलता के साथ व्याप्त है उस ईश्वर से सम्पन्न होते हुये से तुम त्याग भावना पूर्वक भोग करो।
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॥१॥अनुवाद:-अखिल विश्व मे जो कुछ भी गतिशील अर्थात चर अचर पदार्थ है, उन सब मे ईश्वर अपनी गतिशीलता के साथ व्याप्त है उस ईश्वर से सम्पन्न होते हुये से तुम त्याग भावना पूर्वक भोग करो।
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और संगीत साधक स्वयम पारब्रम्ह हो तो क्या कहने! भगवान् कृष्ण ने आपनी मुरली से संगीत के सातों स्वरों को ऐसा झंकृत किया की चर अचर सब उनके वशीभूत हो गए! मुरली एक सामान्य बाजा है;