इसमें क्षणभंगवाद, परिणामवाद, आरम्भवाद, सांख्यमत, चार्वाक मत, अयोद्वाद तथा मीमांसक मत का खण्डन किया गया है।
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उनकी माने तो इस देश के सनातनियों ने ऐसा कुछ हिंसक व्यवहार लोकायत या चार्वाक मत के अनुयायियों के साथ किया था।
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सुख है वह सुख न चार्वाक मत है, न वैष्णव मत है और न ही प्रभाकर (सांख्य) मत में है |
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३) माधवाचार्य विद्यारण्य ने अपनी महान कृति 'सर्वदर्शनसंग्रह' में चार्वाक मत को भी संगृहीत किया है और सबसे बड़ी बात है कि इसी मत से शुरूआत की गयी है।
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आस्तिक दर्शनों के अनुसार मुक्त आत्मा में जैसे ज्ञान नहीं होता है उसी तरह चार्वाक मत में भी मृत शरीर में ज्ञान के अभाव का उपपादन हो जाता है।
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शरीरात्मवाद में स्मरण का उपपादन-चार्वाक चार्वाक मत में शरीर को ही आत्मा मान लेने पर बाल्यावस्था में अनुभूत कन्दुक क्रीडा आदि का वृद्धावस्था या युवावस्था में स्मरण कैसे होता है?
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कुछ विद्वानों का कथन है कि देवगुरु वृहस्पति ने चार्वाक मत का प्रचार असुरों में किया था ताकि इसके अनुसार चलने से उनका नाश हो जाय और देवता सुरक्षित हो जायं।
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नतीजा यह है कि आज आपको भारत की इस अतिमहत्वपूर्ण विचारधारा का कोई प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं मिलता, जिसकी सहायता से चार्वाक मत पर कुछ भी अधिकृत रूप से लिखा जा सके।
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३) माधवाचार्य विद्यारण्य ने अपनी महान कृति ' सर्वदर्शनसंग्रह ' में चार्वाक मत को भी संगृहीत किया है और सबसे बड़ी बात है कि इसी मत से शुरूआत की गयी है।
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फलत: मृत शरीर में ज्ञान का कारण प्राण से संयुक्त शरीर भी नहीं है और कार्य ज्ञान भी नहीं हे अत: अन्वय व्यभिचार का वारण चार्वाक मत में हो जाता है।