मालिन ने बुढ़ापे के चिड़चिड़ेपन से जवाब दिया-तुम्हारी समझ मोटी हो तो कोई क्या करे! कोई पान लगाती है, कोई पंखा झलती है, कोई कपड़े पहनाती है, दो हजार रुपये में तो सेजगाड़ी आयी थी, चाहो तो मुँह देख लो, उस पर हवा खाने जाती हैं।
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लोगों के मल-मूत्र साफ़ कर, उनकी बीमार देहों को नहला-धुला कर, उनके झूठे बर्तन माँज कर, उनके दवाई की बदबू में लिपटे, घाव के पसों से सने गँदे कपड़े धो कर, उनके चिड़चिड़ेपन से भरी झिड़कियाँ सुन कर शेष जीवन बिता देना चाहती है, आखिर क्यों? कोई इस चक्रव्यूह से ऐसी आसानी से निकल कर अपने को संत कैसे घोषित कर सकता है?