और मैं तुम्हारे माथे पर बूंद की तरह चिपका रहना चाहता हूं, मैं सूरज का अवतार हूं, जो तेरे माथे पर रहने के लिए ही आया है, मैं चांद का अर्क हूं, तेरी आंखों में रहता हूं, तुझे पता है, तेरी आंखों की सफेदी मुझसे है...
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विगत दो वर्षो से अन्ना जी के जनलोकपाल आंदोलन के बाद से सत्ता के महीन खेल से नावाकिफ हम जैसे अल्पज्ञानी आम लोगों का समाचार चैनलों चिपका रहना और अखबारों को चाटना एक आदत व शगल हो गया है, आन्दोलन के बाद से केवल एक काम रह गया है की जहाँ भी धरना, प्रदर्शन या अनशन हो पहुँच जाओ, दर्द देख के दर्द होता है एक रिश्ता बन रहा है दर्द से दर्द का..
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यदि ऐसा नियम होता है तो बहुत कुछ भ्रष्टाचार राजनीति से कम होता नजर आएगा | भारत कि राजनीति में ऐसा नही होता | हर दल में एक विधायी पक्ष और दूसरा संगठन पक्ष होता है | जो नेता एक बार विधायी पक्ष मे चला जाता है वही सरकार कि कुर्सी से चिपका रहना चाहयता है, फिर वह कुर्सी को नही छोड़ता | हमारी राजनैतिक व्यवस्था में एसे अनेक दोष है, जिनके कारण भ्रष्टाचार पनप रहा है |