सिर को उत्तरी धु्रव और पैरों को दक्षिणी धु्रव माना जाता है अर्थात् गुरूत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा या विद्युत चुंबकीय ऊर्जा सदैव उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र (cycle) पूरा करती है.
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सिर को उत्तरी धु्रव और पैरों को दक्षिणी धु्रव माना जाता है अर्थात् गुरूत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा या विद्युत चुंबकीय ऊर्जा सदैव उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र (cycle) पूरा करती है.
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मैंने उन्हें वायुसेना में अपने नहीं चुने जाने की असफलता के विषय में बताया तो वे बोले-इच्छा, जो तुम्हारे हृदय और अंतरात्मा से उत्पन्न होती है, जो शुद्ध मन से की गई हो, एक विस्मित कर देने वाली विद्युत चुंबकीय ऊर्जा होती है।
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बल्कि, यह ब्रह्मांड के साथ जैव ऊर्जा एक्सचेंजों बनाए रखना सुरक्षा तथा जीवन से लिपटे जैव रासायनिक एवं विद्युत चुंबकीय ऊर्जा क्षेत्र की एक उत्पाद है …… और … यह श्री चक्र …… जैव ऊर्जा के समुचित प्रवाह को सुनिश्चित करता है …!
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यज्ञ करने से उत्पन्न फोरमैल्डीहाईड गैस वातवारण को बैक्टीरिया फ्री करती हे, जिससे वातावरण पूर्ण रूपेण सुरक्षित हो सकता है और फिर मंत्रों का विशेष प्रयोग तो पुरोहित और यजमान अर्थात मंत्रो को उच्चारण करने वाले और श्रवण करने वाले दोनों को चुंबकीय ऊर्जा से भर देते हैं।
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अनिष्ट स्वप्नों के उपाय: सोते समय सिर दक्षिण दिशा की ओर होने पर शरीर की विद्युत चुंबकीय ऊर्जा की सक्रियताएं संतुलित रहती हंै, जिससे शरीर व मन पर बाहरी नकारात्मक तत्वों का प्रभाव पूर्ण रूप से नहीं होता तथा इस स्थिति में भयावह या अनिष्टकारी स्वप्न नहीं आते।
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सिर को उत्तरी धु्रव और पैरों को दक्षिणी धु्रव माना जाता है अर्थात् गुरूत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा या विद्युत चुंबकीय ऊर्जा (grantational force, magnetice or eleobomognetic force) सदैव उत्तरी धु्रव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र (cycle) पूरा करती है।
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सिर को उत्तरी धु्रव और पैरों को दक्षिणी धु्रव माना जाता है अर्थात् गुरूत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा या विद्युत चुंबकीय ऊर्जा (grantational force, magnetice or eleobomognetic force) सदैव उत्तरी धु्रव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र (cycle) पूरा करती है।
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जो विचार हम भाव आधारित विश्वास या भय के साथ बार-बार दोहराते हैं वही मंत्र की शक्ति हम निर्मित कर वैसी ही तरंगे हमारे आभामंडल में चुंबकीय ऊर्जा की परतों के रूप में निर्मित करते हैं और अपने आप प्रकृति के नियमों के अनुसार उस समान ऊर्जा को अपने जीवन में आकर्षित कर लेते हैं।
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आजकल इन समस्याओं के बढ़ने का कारण यह भी है कि पुराने समय में हम मिट्टी के घरों में रहते थे जिनकी छतें पिरामिड आकार की होती थीं तथा फर्श कच्चा व गोबर से लिपा हुआ होता था जिसके कारण घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश अधिक होता था जो हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को भूमि से चुंबकीय ऊर्जा के रूप में मिलती थी इसीलिए उस समय मनुष्य बिना किसी दर्द के 100 साल तक जीवित रहता था।