जब कुलपति ऐसा है तो छात्र कैसे होंगे, कल्पना की जा सकती है…:) और अब यह रोग ऊपर तक यानी पी एचडी तक पहुँच चुका है, वह भी नकल करके चेपी जा रही हैं, मध्यप्रदेश के दो कुलपतियों पर चोरी की पीएचडी करने का आरोप लगा हुआ है, जाँच चल रही है…।
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;) ;) (दो-दो इस्माइली चेपी हैं सर जी नोटपैड की सोहबत से अकल लेके) हां तो हम कह रहे थे कि यह विवाद-भूमि हमें प्राणों से भी प्यारी है जब से हम इस विवाद रस को टेस्ट किए हैं घर-पडोस-दफ्तर के रगडे-झगडे बेमजा लगने लगे हैं।
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हम अरुण से सहमत हैं, मेरे लिए इनमें से अधिकतर व् यंजन नए हैं (पहाड़ बहुत जाते हैं पर साथ में होते हाईजीन के मारे लोग जो स् थानीय नहीं वही पनीर उनीर में इंट्रेस् टेड होते हैं) इसलिए हर व् यंजन पर रुका जाए विस् तार से बताया जाए तथा हो सके तो हर व् यंजन की तस् वीर भी चेपी जाए।
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यहाँ तो जो सड़कें अंग्रेजों ने बनाई थी, अपने ठेकेदारों को खाने कमाने के लिए उन्ही से इतना मिल जाता है कि इससे अलग सोचने और करने की फुर्सत कहाँ सब तरफ़ चेपी मारने का काम चल रहा है, कहीं गड्ढा ख़ुद रहा है तो कहीं गड्ढा भरा जा रहा है, कभी टेलीफोन की तारें बिछ रही हैं, तो कहीं पानी की पाईप लाइन तो कहीं सीवर लाइन।
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कब डॉक्टर को मिलें-शिशु के व्यवहार में अंतर महसूस करें-अगर किसी चेपी रोग के लक्षण महसूस हो-निशान में दर्द इठे, सूजन आ जाये या गरम महसूस हो-मध्य से लाल रेखायें जाती हुई दिखने लगे-परू भर जाये-गले, बगल या पेट और जाँघ के बीच के भाग में गिलटी उभर आये-बुखार हो-डायपेर रैश के दो तीन दिन तक ठीक ना होने पर-कोई और नया चिन्ह उभरने पर शिशु की त्वचा बेहद नाजुक होती है।
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बरसात के चलते और भी विलम्ब होने की आशंका ड्राईवर ने जताई...बहरहाल हम चल पड़े..बनारस में ही जी टी रोड पर जगहं जगहं इतना पानी भरा था कि इनोवा उस पर जैसे तैर सी रही हो और इस 'तैराकी' के लुत्फ़ में हम बनारस की सीमा को पार करने में ही डेढ़ घंटे से अधिक समय गुजार दिए...मित्र के चेहरे पर परेशानियां उभरने लगीं थीं....बहरहाल हम बिहार की सीमा में प्रवेश कर चुके थे जिसका प्रमाण भी साक्षात दिखने लगा था....बिहार की एक वाटर मार्क-पहचान आप यहाँ चेपी फोटो में पा सकते हैं....