समृद्घि की फूलदानी के श्रेष्ठ आकार की बात करें तो उसका मुंह चौड़ा होना चाहिए और उसका गला पतला होना चाहिए वैसे ही उसका तल चौड़ा होना चाहिए जो रेत की घडी के समान दिखती हुवी होनी चाहिए।
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समृद्घि की फूलदानी के श्रेष्ठ आकार की बात करें तो उसका मुंह चौड़ा होना चाहिए और उसका गला पतला होना चाहिए वैसे ही उसका तल चौड़ा होना चाहिए जो रेत की घडी के समान दिखती हुवी होनी चाहिए।
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“सङके तो चौड़ी ह? ई हैं, पर जगह जगह सङको के बिच में खड़े मन?दिर तथा मज़ारे भयानक अवरोधक का काम करते हैं?से में सङको का चौड़ा होना निरर?थक सा लगता हैं.?…? फिर पता नहीं क?या ह?आ, श?रद?धाल?ओं के साथ सम?ौता हो गया लगता हैं.
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मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हू-ज़बान की जो लज़्ज़त आपके यहाँ है उसका जवाब नहीं-आपका कमेण्ट मुझे बहुत आश्वस्ति और खुशी देता है-रंग और खुश्बू नुमाया हो या पोशीदा आप जैसा पारख़ी जब तस्दीक करता है तो गज़लकार का सीना चौड़ा होना लाज़मी है-मयंक
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[...] खामोशी से बदलता शहर नामक प?रविष?टी में मैने लिखा था “सङके तो चौड़ी ह?ई हैं, पर जगह जगह सङको के बिच में खड़े मन?दिर तथा मज़ारे भयानक अवरोधक का काम करते हैं?से में सङको का चौड़ा होना निरर?थक सा लगता हैं.?…? फिर पता नहीं क?या ह?आ, श?रद?धाल?ओं के साथ सम?ौता हो गया लगता हैं.
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उदाहरणार्थ, खोपड़ी की मेरुदंड पर अग्रिम स्थिति (उसके खड़े होकर चलने का द्योतक), ललाट का गोलाकार होना, भौं-अस्थियों के भारी होते हुए भी उभार का न होना, जबड़े की आकृति, कृंतकों (incisors) का छोटा तथा कम नुकीला होना (यद्यपि रदनक लंबे थे), कूल्हे की इलियम (ilium) नामक अस्थि का चौड़ा होना तथा अन्य बहुत से गुणों में आस्ट्रैलोपिथीकस मनुष्य के इतने निकट था कि उसे मानव परिवार, “होमिनिडी”