-और चौथा वर्ग है “ शूद्र ”-वे, जो उस समय्खंड में ऊपर दिए कर्मक्षेत्रों (शक्ति से समाज की रक्षा, ज्ञानोपार्जन और वितरण, धनोपार्जन और सामाजिक आवश्यकता की वस्तुओं / रोगारों का उत्पादन) में ख़ास तौर पर न रमे होंगे, वे इन सब में लगे हुए लोगों को (यथोचित पारिश्रमिक के साथ) सहयोग देते होंगे ।
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फ्रंट बने और टूट गए लेकिन यह विचार जिंदा रहा कि राजनीतिक हस्तक्षेप जरूरी है. ’ </p>< p style=“text-align: left;”>पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के प्रमुख सदस्य एवं छात्र आंदोलन से निकले गोपाल राय भी इस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं (दूसरा लिंक देखें).</p>< p style=“text-align: left;”>आप से जुड़ने वाला चौथा वर्ग उन राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले ऐसे लोगों से बना है जो पहले दूसरे राजनीतिक दलों के सदस्य रह चुके हैं.
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योजनाओं का लाभ वास्तविक हितग्राहियों को कभी नही मिल पाता सारा का सारा नेता, अधिकारी और कर्मचारी चट कर जाते हैं और एक चौथा वर्ग जिसने पत्रकारिता को पलीता लगा दिया, लकड़बघ्घा बन गया है जो जूठन पर ऐश कर रहा है.स्व. शरद जोशी ने कितना धारदार लिखा इन इल्लियों और टिडियों के बारे में, जो अब अजर और अमर हो गयी हैं, पकी पकाई फसलों को चट करने के लिये.