दुनिया में एक-दूसरे के लिए शक और दहशत पैदा करने का यह कारोबार जंगखोर कारोबारियों का सोचा-समझा काम होता है और उनके पेश किए हुए आंकड़ों, विश्लेषण से खरीदी में बेईमानी की राह देखते लोगों का काम आसान हो जाता है।
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कुछ जंगखोर लोग पाकिस्तान की तरफ से ऐसी हरकत के पीछे हो सकते हैं, और उनकी इस हरकत से उकसावे में आकर हिंदुस्तान के कुछ लोग बातचीत को तोडने और सरहद पर फौजी तैयारी को जोडने की बात शुरू कर भी चुके हैं।
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लेकिन अमरीका ने दुनिया के सबसे बड़े जंगखोर और हमलावर की तरह जब झूठे बहाने गिनाकर एक के बाद दूसरे मुस्लिम देशों पर हमला करना शुरू किया, तो मुस्लिम दुनिया में उसकी नीयत एक मजहब पर हमला करने वाले की कायम हो गई।
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दीवार पर लिखी हुई इस बात पढने और समझने के लिए किसी अधिक समझ-बूझ की जरूरत नहीं है लेकिन दीवार के आरपार देखने के लिए एक समझ जरूर लगेगी लेकिन उस समझ को रोकने में दुनिया के जंगखोर लोग और जंग के सौदागर, सभी लग जाएंगे।
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कहने की जरूरत नहीं कि पिछले वर्षों में पाकिस्तान की ‘ जमात-ए-इस्लामी ‘ तथा ‘ आई. एस. आई. ‘ द्वारा कश्मीर की युवा और राजनीतिक भटकाव से भरी पीढ़ी के खून में, मजहबी कट्टरवाद का जहर डाल कर, उन्हें जंगखोर बना दिया जा चुका है, जिसके चलते हथियार उनके हाथों के खिलौने बन चुके हैं।
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कैसा राष्ट्र? पागल-जंगखोर आतंकवादियों से मुकाबला तो फौज कर लेगी किन्तु देश के अन्दर मौजूद अनगिनत राष्ट्रघातियों से मुकाबला कौन करेगा? वर्तमान दौर की आर्थिक-वैदेशिक और सामरिक नीति को चूँकि यूपीए और एनडीए दोनों का वरद हस्त प्राप्त है अतएव देश के ये दोनों बड़े राजनैतिक समूह और उनका नेतत्व करने वाले बड़े दल कांग्रेस और भाजपा भी इस हालात के लिए जिम्मेदार हैं.
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लेकिन पाकिस्तान अपनी दिक्कतों से जब अलग जूझ रहा है, और भारत दसियों हजार करोड़ रुपए की और खरीदी के करीब है, साथ-साथ इन दोनों ही देशों में भूख और कुपोषण के शिकार लोग करोड़ों में हैं, गरीबी की रेखा के नीचे दोनों जगह कम से कम आधी-आधी आबादी तो है ही, तब फिर जंगखोर की तरह कल के एक घर के दो बच्चे इस तरह लडने की तैयारियां कर रहे हैं जिससे कि भूखे के मुंह का कौर निकलकर पश्चिम के देशों के हथियारों के कारखानों में जा रहा है।