अब जब श्री श्री रविशंकर ने स्वामी रामदेव को जूस पिला कर एक जटिल परिस्थिति से उन्हें निकाल दिया है, हमें यह कामना करनी चाहिये कि बाबा जल्दी स्वस्थ हो जायेंगे और उसके बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन को एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के चेयरमैन की तर्ज पर नहीं चलायेंगे।
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फिर क्या यह भी एक जटिल परिस्थिति नहीं है कि किसी समाज को किसी हद तक बुद्धिजीवी की जरूरत ही महसूस न हो? आप देखिए कि कवि भी एक तरह का बुद्धिजीवी है पश्चिम के मुताबिक, लेकिन जो अपने युग के सबसे समर्थ, सबसे संवेदनशील कवि कहे जा सकते हैं, या जिन्हें आज के भी समर्थ कवि कहा जा सकता है, उनकी कविता के प्रति एकाएक वैसी दिलचस्पी या ऐसी जिज्ञासा अमूमन अब पढ़े-लिखे लोगों को नहीं होगी।