हे श्रीरामजी, मन, चित्त, वासना, कर्म, दैव और निश्चय से सब सत्त्व था असत्त्व, चित्त्व या जडत्व, भेद या अभेद आदि से तत्त्वतः जिसका निश्चय नहीं हो सकता ऐसा मिथ्याभूत मन की (मनोरूपता को प्राप्त हुए पुरुषकी) संज्ञाएँ कही गई हैं।
22.
धर्म ही एक ऎसा तत्व है जो मनुष्य को पशु से अधिक विलक्षण सिद्ध करता है यदि मनुष्य में ईश्वर और धर्म की भावना न रहे तो मनुष्य पशु ही है, वह जडत्व में अपने खाने-पीने तथा शान से जीने को ही जीवन को मानकर अपना मानव जीवन निरर्थक कर देता है ।
23.
गाड़ी रुकने से पहले पटरियों को खरोंचती चली गयी. जो खड़े थे वे अपना जडत्व संतुलित करने में लग गए.मैं गाड़ी के पूरी थमने के बाद ही उठा और दो चार लोगों की तरह नीचे उतर गया.रात बहुत तो नहीं पसरी थी पर गाँव में अँधेरा भरपूर हो गया था.मैंने पीछे मुड़कर देखा तो ट्रेन जा चुकी थी.