1936 में जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस की नीतियों से मतभेद होने के बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया था लेकिन करीब 40 साल के बाद फिर जब जयप्रकाश नारायण को लगा कि देश का लोकतंत्र खतरे में है तो उन्होने मोरारजी देसाई के साथ मिलकर जनता मोर्चा बनाया और संघर्ष का बिगुल फूंक दिया।
22.
यहां कुछ यक्ष प्रश्न उठ रहे हैं मसलन हमारे राजनेता नैतिक तौर पर इतने गिर चुके हैं कि जनता मोर्चा निकाले? क्या हम वाकई बेशर्म हो गए हैं? हममे कोई लोकलाज नहीं बची? जब हमने किसी भी सरकारी रिपोर्ट को न मानने की कसम खा रखी है तो फिर लेखा समिति नियंत्रक और महालेखा परीक्षक सी. ए.ज ी. जैसी संस्थाओं का औचित्य ही क्या रह जाता है?