आठ भुजा है, सिंह का वाहन है,साथ हाथ में कमंडल,धनुष,बाण,कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र गदा और सर्व सिध्धि निधि देने वाली जपमाला है...
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इश्क तो हमेशा नया होता है, आसन फूको, लोटा फेंक के तोड़ दो, जपमाला, प्याला, और दंड न पकड़ो, ऊंची आवाज में विद्वान सत को छोड़कर असत को अपनाने की बात कहता है।
23.
हाथ पाव, और टूँका कद बनाया,चार भुजा और बड़ा पेट,जो देख ने मे लगे विशाल,उसकी शोभा का तो क्या कहेना? उनके कंठ मे घूघर माला.उनके पहले कर मे जल्कमंड़ल,दूसरे कर मे मोदक आहार,तीसरे कर मे फर्सी शोभे और चोथे कर मे जपमाला ।
24.
शिवलिंग, भगवती की मूर्ति, शंख, यंत्र, शालिग्राम का जल, फूल, तुलसीदल, जपमाला, पुष्पमाला, कपूर, गोरोचन, चंदन की लकड़ी, रुद्राक्ष की माला, कुशकी जड़, पुस्तक और यज्ञोपवीत-इन वस्तुओं को भूमि पर रखने से मानव नरक में वास करता है।
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तो खैर जब मदन गोपाल की मूर्ति पहले सनातन गोस्वामी को मिली थी तो उस समय कोई मंदिर तो थे नहीं वृन्दावन में, सनातन गोस्वामी का कोई भजन कुटीर भी नहीं था तो केवल एक थैली में रखके जैसे हम जपमाला थैली में लटका कर जाते हैं वैसे सनातन गोस्वामी मदन गोपाल को ले जाया करते थे इधर-उधर।
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मथुरा: नंदलाल की नगरी के बांकों की पहचान गले में कंठी, बदन पर बगलबंदी और धोती, माथे पर अष्टगंध वाले पीले चंदन का टीका, कानों में सोने के कुंडल, सिर पर लहराती शिखा, कंधे पर सज रहे जनेऊ और हाथ में कड़ा व हरीनाम जाप के लिए निरंतर घूमती जपमाला तक ही थी।
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मन्दिर का सम्पूर्ण परिसर इतना व्यवस्थित और शांत था कि अनजाने ही मन “ ॐ नम: शिवाय ” की जपमाला बन गया! दो-दो पंक्तियाँ स्त्रियों और पुरुषों के पृथक दर्शन के लिए थीं, जिसमें साथ लाये हुए पुष्प-पत्र को अर्पित करने और मत्था टेकने के लिए पर्याप्त समय देने के बाद अगले ही पल आगे बढ़ा दिया जाता था ।