इस परियोजना की सीमा का भान 1978 की भागीरथी बाढ़ तथा 1991 के भूकंप में हो सका, जब गाद से टनैल और बिजलीघर भर गया और टनैल के उपर स्थित जामक गांव में सभी मकान ध्वस्त हो गए और 76 ग्रामीण तथा सभी पशु कालकवलित हो गए।
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इसी प्रकार जिले के नौ गांव भंकोली डासडा दंदालका अगोड़ा सैकू गंवाणा नैताला सिरोर हिना मनेरी जामक कामर बयाणा ओथरू ओंगी टिपरी सिंलग जुड़ावभटवाड़ी सैंज जखोल गोरसाली द्वारीपाही रैथलनटीण बंद्राणी क्यार्क पाला बारसू सांलग तिहारभुक्की स्याबा सेरी सौलू भेल कुज्जन पिलंग जैंकाणी जैसे कई दूरस्थ गांवों में राहत सामग्री और रसद की जरूरत है।
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प्राकृतिक विध्वंश और कृतिम विध्वंश के कारण, जो वाचाल भाषा में राहत भरे शब्दों के रूप्ा में सुना जाता है, त्रस्त और अपने जीवन यापन की स्थितियों से जूझने के अवसर भी खो जाते जामक वासियों को भण्ड-मज्या बनाने के लिए अवसरों के रूप में दिखायी देने वाले स्वामियों और उनके चेले चपाटों की कमी नहीं है।
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अचरज इस बात का है कि बांध निर्माण करने वाली सरकार और कम्पनियां जल विद्युत परियोजनाओं से प्रभावित उत्तरकाशी जिले के गांव भंगेली, सुनगर, तिहार, कुंजन, हुर्री, भुक्की, सालंग, पाला, औंगी, कुमाल्टी, सैंज, भखाड़ी, जामक तथा चमोली जिले में चांई और टिहरी जिले में फलेंडा, चानी, बासी आदि गांवों की सुरक्षा, आजीविका और रोजगार की कोई व्यवस्था करने की बजाय पुलिस दमन के सहारे लोगों की आवाज को दबाने का कार्य कर रही हैं।