इनसे भी आगे आजकल डॉक्टर कुछ बढ़े हुए हैं जो डिंबधारों की दोहराई देते हैं और दावे के साथ कहते हैं कि संतान का पुत्र या पुत्री होना सर्वथा माता-पिता की इच्छा पर निर्भर है और उनकी मर्जी के विरुद्ध कुछ भी नहीं हो सकता किंतु जीवशास्त्र वेत्ताओं (Biologists) की खोज दूसरे ही प्रकार की है।
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लो अब एक चुटकला सुनो: जीवशास्त्र का एक विद्यार्थी जो काकरोच पर थीसिस लिख रहा था, उसे एक काकरोच मिला, उसने उसे टेबिल पर रखा, और बोला “अब चल कर दिखा”, काकरोच बेचारा एक दो कदम चला, विद्यार्थी ने उसकी दो टांगे तोड़ दी, और बोला, “अब चल कर दिखा” काकरोच ने फिर ट्राई मारा, इसी तरह विद्यार्थी ने उसकी एक एक करके सारी टांगे तोड़ दी और अन्त मे बोला “अब चल कर दिखा” काकरोच बेचारा क्या करता, वंही पड़ा रहा।