यों तो फैशनपरस्ती, अशिष्टता, कर्कशता, श्रम से जी चुराना आदि छोटी-छोटी बुराइयाँ अब स्त्रियों में बढने लगी हैं, परन्तु पुरुषों की तुलना में स्त्रियाँ निस्सन्देह अनेक गुनी अधिक सद्गुणी हैं, उनकी बुराइयाँ अपेक्षाकृत बहुत ही सीमित हैं।
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माना कि फिल्म में कई कमियां हो सकती हैं, या और भी खोजी जा सकती है, लेकिन क्या ये कोई साधारन मौका था? जो देश ओलंपिक में गोल्ड और फिल्मों में ऑस्कर के लिए तरसता हो वहां क्वालिटी और भेदभाव की बात उठाना असलियत से जी चुराना है।
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कुरआन पढ़ने और समझने से जी चुराना, उसके हुक्म को नज़रअंदाज़ करके अपनी ख्वाहिश और समाज की रस्मों के मुताबिक़ जीना, ज़कात अदा न करना, औरतों को विरासत में हिस्सा न देना, दहेज लेना और दिखावे और शान के लिए दिलेरी के साथ गुनाह करना आज अक्सर मुसलमानों का अमल है।
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कुरआन पढ़ने और समझने से जी चुराना, उसके हुक्म को नज़रअंदाज़ करके अपनी ख्वाहिश और समाज की रस्मों के मुताबिक़ जीना, ज़कात अदा न करना, औरतों को विरासत में हिस्सा न देना, दहेज लेना और दिखावे और शान के लिए दिलेरी के साथ गुनाह करना आज अक्सर मुसलमानों का अमल है।
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जाति भेद, स्त्री उपेक्षा, खर्चीली शादियाँ, दहेज, मृत्युभोज, पशु-बलि, भूत-पलीत, टोना-टोटका का अन्धविश्वास, शरीर को छेदना या गोदना, जेवरों का शौक, भद्दे गीत गाना, भिक्षा माँगना, थाली में जूठन छोड़ना, गाली-गलौज की असभ्यता, बाल-विवाह, अनमेल विवाह, श्रम से जी चुराना आदि अनेक सामाजिक कुरीतियाँ हमारे समाज में प्रचलित हैं।