भारत में जुरैसिक प्रणाली के पर्वत उत्तर में स्पीति, कश्मीर, हजारा, शिमला-गढवाल और एवरेस्ट प्रदेश में पाये जाते हैं।
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ब्रौंन्यार (Brongniar) ने सन 1829 में आल्प्स पर्वत की जुरा श्रेणी के आधार पर इस प्रणाली का नाम जुरैसिक रखा था।
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परन्तु जुरैसिक युग के अपरान्ह में यह देखा गया है कि पृथ्वी पर विविध विक्षोभ हुए और समुद्री अतिक्रमणों से जगह-जगह पानी भर गया।
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जुरैसिक पार्क ' में वैज्ञानिक प्राचीनकाल के मच्छरों के पेट से डाइनोसोरों का डी एन ए निकाल कर नए डाइनोसोर तैयार कर लेते हैं।
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यहां पाठकों के मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जुरैसिक युग क्या है और कितना पुराना रहा होगा तथा वास्तव में फासिल या जीवाश्म बनते कैसे हैं।
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इस उपवर्ग के अंतर्गत जुरैसिक काल के वे सभी दंतयुक्त जबड़े, नाखूनदार अंगुलियों और लंबी दुमवाले तथा स्वतंत्र रीढ़, कशेरुकपुच्छीय और स्वंतत्र करभिकास्थियाँ (metacarpals) तथा पतली तलदंडहीन उरोस्थि (keelless sternum) वाले पक्षी, जैसे ऑर्किआँप्टेरिक्स (Archaeopteryx) तथा आर्किऑरनिस (Archaeornis) आते हैं।
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वास्तव में फाइलम सीफैलोपोडा एम्नोनॉयडिया (phylum cephalopoda amnonoidea) वंश का यह जीवाश्म (Fossil) जुरैसिक काल का स्पीति शेल (spiti shale) है, जिसकी रासायनिक संरचना कैलशियम कार्बोनेट (calcium-CO ३) है।
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उसके मन में यह विचार भी घर कर गया होगा कि यदि जुरैसिक पार्क जैसी कोई फिल्म भारत में बनती है तो शिवालिक पहाडियों का अंचल उसके लिये उपयुक्त स्थान ही नहीं बल्कि इसका एक जुरैसिक युगीन आधार भी हो सकता है।
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उसके मन में यह विचार भी घर कर गया होगा कि यदि जुरैसिक पार्क जैसी कोई फिल्म भारत में बनती है तो शिवालिक पहाडियों का अंचल उसके लिये उपयुक्त स्थान ही नहीं बल्कि इसका एक जुरैसिक युगीन आधार भी हो सकता है।
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क्योंकि पार्क स्थल के लिये उस समय कोई भी वाहन योग्य मार्ग नहीं था, इसलिये जुरैसिक युगीन जीवों के कुछ दुर्लभ जीवाश्म प्रतिरूप सडक के किनारे रखे गये जिनमें तलवार रूपी घुमावदार दांतों वाले चीतों, छह उत्कीर्ण विलुप्त दांत वाले दरियायी घोडों और कवची कछुओं के मुख्य मॉडल थे।