आखिर ये सारी बातें लड़की अपने बाप से भी तो कह सकती थी! मुझे एक लोकगीत याद आ रहा है, जिसमें कोई कम्बख्त चिड़िया सुबह-सुबह कूक कर नायिका का नाश्ता हराम कर देती थी और नायिका थी कि उस चिड़िया की शिकायत भी अपने प्रियतम से करती थी: भिनसारे चिरैया काय बोली? ताती जलेबी, दुधा के लडुआ जेवन न पाये पिया फिर बोली ; पाना पचासी के बीरा लगाये चाबन न पाये पिया फिर बोली, काय बोली? सखि, वसन्त आया.....