लाल-वास्तविक नियंत्रण; जैतूनी-अन्वेषण; नारंगी-प्रभाव और व्यापार के क्षेत्र; गुलाबी-संप्रभुता का दावा; हरा-व्यापार चौकियां; नीला-प्रमुख समुद्री अन्वेषण, मार्ग और प्रभाव क्षेत्र
22.
हैरी ने एक खिड़की से देखा, जब जैतूनी चमडी तथा काले बालों वाली एक दैत्याकार और आकर्षक औरत गाड़ी की सीढ़ियों से उतरी तथा इंतज़ार कर रहे हैग्रिड के गले लग गई ।
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प्रधानमंत्री की ओर से मेहमानों के लिए पारंपरिक भारतीय भोजन का इंतजाम किया गया था, जिसमें जैतूनी मुर्ग सीक और गोश्त बर्रा कबाब से लेकिर कुरकुरी भिंडी और मीठी फिरनी शामिल थे।
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पूर्व के कई अध्धय्यनों से भी ऐसी ही ध्वनी बारहा आई है, जैतूनी-तेल से तैयार की गई ' मेदितारेनियन डाईट ' कैंसर, हृद-रोग यहाँ तक के अल्जाइ-मर्ज़ से भी अपेक्षा कृत बचाए रहती है ।
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जो लोग फिदेल की मौत चाहते थे, उन्हें निराशा ही हाथ लगी क्योंकि फिदेल अपनी जैतूनी हरे रंग की वर्दी में वापस आ गए हैं और वे अब न केवल क्यूबा के राज्याध्यक्ष हैं बल्कि गुट निरपेक्ष आंदोलन के भी अध्यक्ष हैं।
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अगर बाएं हाथ की पगडंडियां दौड़ लो तो जैतूनी रंग का तालाब और तालाब के घाट की सीढ़ियां उतरते हुए यह महसूस होता कि खेत ऊंचाई पर हैं और तालाब का पानी छूने के लिए आना पड़ता नीचे बचपन की प्रतिध्वनियां आती रहीं हर उम्र में आती रहती हैं
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पश्चिमी घाट में मिलने वाली उप-प्रजातियों को कभी-कभी तहमीने (सालिम अली की पत्नी का नाम) के रूप में अलग वर्गीकृत किया जाता है, ऊपर से ये जैतूनी रंग वाली होती हैं, गाली गर्दन पर सफ़ेद चकत्ते होते हैं तथा पंखों के निचले बाग़ पर पर ये चकत्ते नहीं दिखते है.
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मेरी दोनों बड़ी बहनें बहुत अलग थीं, गुलवाशा जैतूनी और लुबना खुबानी की रंगत की थीं, उनकी तीखी नाक और बड़ी आँखें उन्हें बेइन्तहाँ खूबसूरत बनाती थी, मैं ही घर भर में अलग थी, सादा और पढ़ाकू जिसका ताना अब्बू अकसर अम्मी को अकसर दिया करते... गुलवाशा की... यह जैतूनी रंगत ही उसका ख़ासमखास लिबास थी, और जिस्म की लचक उसका बेशकीमती गहना...
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मेरी दोनों बड़ी बहनें बहुत अलग थीं, गुलवाशा जैतूनी और लुबना खुबानी की रंगत की थीं, उनकी तीखी नाक और बड़ी आँखें उन्हें बेइन्तहाँ खूबसूरत बनाती थी, मैं ही घर भर में अलग थी, सादा और पढ़ाकू जिसका ताना अब्बू अकसर अम्मी को अकसर दिया करते... गुलवाशा की... यह जैतूनी रंगत ही उसका ख़ासमखास लिबास थी, और जिस्म की लचक उसका बेशकीमती गहना...
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मेरी आँखों में अंकित है पहली मृत्यु एक स्ट्रेचर की तरह जिसमें लाया गया था बाबा का शरीर वापस अस्पताल से-गहरे जैतूनी रंग का मोटा कैनवास और रोजमर्रा के इस्तेमाल से चिकने चमकते लकड़ी के हत्थे इतनी रोजमर्रा थी मृत्यु कि चिकने पड़ गये थे हत्थे स्ट्रेचर के और घिस गयी थीं शवालय की सीढ़ियाँ-आज चालीस साल बाद भी कभी कभी दौड़ा लेता है यह सवाल: क्या जीवन के इतने भीतर तक घुसी हुई है मृत्यु?