ऐसे में ये कहना क्या गलत होगा कि सेल्फ रेगुलेशन का मतलब सिर्फ और सिर्फ मालिकों की आवाज बनकर लोगों को झांसा देना और किसी भी हाल में मीडिया को नियम और कायदे के तहत नहीं आने देना है.
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और आज इसी बुद्धिजीवी की समाज को ज्यादा जरुरत है, जो टी वी के फ्रेम में फिट हो न हो, जनमानस के विचारों में बस जाए, आप हाथी के दांत की तरह न हों, जो होता तो दुर्लभ ही जा रहा है किन्तु काम उसका झांसा देना ही है, ऐसा तभी संभव है जब आपकी वाणी, कर्म एवं कर्तव्यपरायणता में एकरूपता हो, जो निकट और दूर दोनों प्रकार के दृष्टिदोषों से मुक्त हो, और तब ही किसी प्रकार की क्रान्ति की युति संभव है वरना ….