क्या किसानों, मजदूरों और आदिवासियों को 'संसदीय सर्वोच्चता' के आगे सर झुका देना चाहिए, जब संसद उनके अधिकारों को छीन लेने वाले क़ानून बनाती है?
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तुम्हारी कलाईयों की लय न मंगलसूत्र बन झुका देना चाहता हूं तुम्हारी उन्नत ग्रीवा जिसका एक सिरा बंधा ही रहे घर के खूंटे से किसी वचन की बर्फ़ में
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सहपाठियों में जब किसी बिषय को लेकर तर्क-वितर्क उपस्थित होता तो आप बड़ी दृढ़ता से अपना पक्ष समर्थन करते और अंत आपकी अकाट्य युक्तियों के सामने प्रतिद्वंद्वी को मस्तक झुका देना पड़ता।
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चूडियों की जंजीर में नहीं जकड़ना चाहता तुम्हारी कलाइयों की लय न मंगल सूत्र बन झुका देना चाहता हूँ तुम्हारी उन्नत ग्रीवा जिसका एक सिर बंधा ही रहे घर के खूंटे से
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लोग पाप-पुण्य के वास्तविक स्वरूप, संयम, शुद्धाचार, परोपकार, सेवा आदि सत्कर्मों को भूल कर केवल किसी देवता की मूर्ति के आगे मस्तक झुका देना और कुछ चढा़वा चढा़ देना मात्र को ही ' धर्म-पालन समझने लग गए थे।
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सिंदूर बनकर तुम्हारे सिर पर सवार नहीं होना चाहता हूं न बिछुआ बन कर डस लेना चाहता हूं तुम्हारे कदमों की उड़ान को चूड़ियों की जंजीर में नहीं जकड़ना चाहता तुम्हारी कलाईयों की लय न मंगलसूत्र बन झुका देना चाहता हूं तुम्हारी उन्नत ग्रीवा जिसका एक सिरा बंधा ही...
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सिंदूर बनकर तुम्हारे सिर पर सवार नहीं होना चाहता हूं न बिछुआ बन कर डस लेना चाहता हूं तुम्हारे कदमों की उड़ान को चूड़ियों की जंजीर में नहीं जकड़ना चाहता तुम्हारी कलाईयों की लय न मंगलसूत्र बन झुका देना चाहता हूं तुम्हारी उन्नत ग्रीवा जिसका एक सिरा बंधा ही
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उन्होंने समझ लिया कि यदि हिंदू-धर्म में थोडी़-सी प्रचलित रीति-रिवाजों का ही नाम है और बिना सोचे-समझे केवल मूर्तियों को सिर झुका देना, उन पर कुछ फूल-पत्ता चढा़ देना, बताशों और लड्डुओं का भोग लगा देना ही इस धर्म का मुख्य लक्षण है तो इसका अंत हो जाना ही अच्छा है।
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मैं दुनिया के सामने घोषणा करना चाहता हूं, यद्यपि पश्चिम के अनेक मित्रों के आदर से मैं वंचित हो गया हूं-और मुझे ग्लानि से अपना सिर झुका देना चाहिए ; किंतु उनकी मित्रता अथवा प्रेम की खातिर भी मुझे अपनी अंतरात्मा की आवाज को दबाना नहीं चाहिए-मेरी अंतर्निहित प्रछति आज मुझे इसकी प्रेरणा दे रही है।
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अब श्रीमती बेसेंट ने निश्चय कर लिया कि वे अपने विश्वास, सिद्धांतों के अनुसार ही कार्य करेंगी, फिर इसका परिणाम कैसा भी क्यों न निकले? उन्होंने विचार किया कि जब एकाएक पिता की मृत्यु हो जाने और माता की संपत्ति के डूब जान पर भी निर्वाह होने पर और आगे बढ़ने का मार्ग निकल आया, तो गृहस्थी अथवा जीवन-निर्वाह के कारण अंतरात्मा के विरुद्ध अंध विश्वास के सामने सर झुका देना कदापि उचित नहीं।