फिर चाहे वो बराबरी प्रकृति के विरुद्ध या बुराई की दिशा में ही क्यों ना हो? वैसे आपने खुद ही अपनी टिप्पणी में कहा है कि आपकी टिप्पणी लेखक को बुरी लगेगी, यानि आपको भी इस बात खूब इल्म है कि आप ग़लत बात कह रहे हैं।
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अफ़सोस हुआ यह देख कर कि नई रचनाकारों के संग्रहों पर ऐसी ' वैयक्तिक ' किस्म की टिप्पिणियाँ भी लिखी जाती हैं, यानी टिप्पणी लेखक के अपने ' वैयक्तिक ' कारणों से. लेखक जान बूझ कर साहित्यीक सोच में यदा कदा आते तूफानी परिवर्तनों पर निकृष्ट तरीके से कमेंट कर रहे हैं.